मौलिक अधिकार ( fundamental rights ) hindi notes
मौलिक अधिकार ( fundamental rights ) hindi notes मौलिक अधिकार (fundamental rights) एक competitive exam के लिए बहुत महत्वपूर्ण टॉपिक हैं। ये टॉपिक विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में आम तौर पर पूछे जाते हैं, जैसे कि UPSC, SSC, State PSCs, Banking Exams, और अन्य प्रतियोगी परीक्षाएं।
- मौलिक अधिकारों का वर्गीकरण:
- समानता का अधिकार: अनुच्छेद 14 से 18 तक
- स्वतंत्रता का अधिकार: अनुच्छेद 19 से 22 तक
- शोषण के विरुद्ध अधिकार: अनुच्छेद 23 से 24 तक
- धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार: अनुच्छेद 25 से 28 तक
- सांस्कृतिक और शैक्षिक अधिकार: अनुच्छेद 29 से 30 तक
- संवैधानिक उपचारों का अधिकार: अनुच्छेद 32
मूल अधिकार को नैसर्गिक अधिकार कहते हैं। क्योंकि ये जन्म के बाद मिल जाता है। मूल अधिकार को मैग्नाकाटा कहते हैं। इसे U.S.A के संविधान से लिया गया है।
अनुच्छेद 12 – मूल अधिकार की परिभाषा
अनुच्छेद 13 – यदि हमारे मूल अधिकार को किसी दुसरे मूल अधिकार प्रभावित करे, तो हमारे मूल अधिकार पर रोक लगाया जा सकता है। (अल्पीकरण)
समता/समानता का अधिकार [अनु० 14-18]
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अनुच्छेद 14 – विधि के समक्ष समानता अर्थात् कानून के सामने सब समान है। यह व्यवस्था ब्रिटेन से ली गई है। जब कि कानून के समान संरक्षण कि व्यवस्था अमेरिका से ली गई है।
अनुच्छेद 15 – जाति धर्म लिंग जन्मस्थान के आधार पर सार्वजनिक स्थान (सरकारी स्थान) पर भेद-भाव नहीं किया जायेगा।
अनुच्छेद 16 – लोक निर्वाचन [सरकारी नौकरी की समानता] इनमें पिछड़े वर्ग के लिए कुछ समय आरक्षण की चर्चा है।
अनुच्छेद 17. अस्पृश्यता [छुआ छुत का अन्त]
अनुच्छेद 18 उपाधियों के अंत (किन्तु शिक्षा सुरक्षा तथा भारत रत्न पदम विभुषण इत्यादि रख सकते हैं। विदेशी उपाधि रखने के पर्व राष्ट्रपति से अनमति लेनी पड़ती है।
स्वतंत्रता का अधिकार [अनु० 19-22]
अनुच्छेद 19- (i) अभिव्यक्ति कि स्वतंत्रता, बोलने की स्वतंत्रता, झण्डा लहराने, पुतला जलाने, RTI तथा प्रेस कि स्वतंत्रता
(ii) बिना हथियार सभा करने की स्वतंत्रता
(iii) संगठन बनाने कि स्वतंत्रता
(iv) बिना रोक टोक चारों ओर घुमने कि स्वतंत्रता
(v) भारत में किसी क्षेत्र में बसने कि स्वतंत्रता
(vi) संपति का अधिकार अब यह मूल अधिकार नहीं रहा। बल्कि कानूनी अधिकार हो गया।
सम्पत्ति के अधिकार को 44वें संविधान संशोधन द्वारा 1978 में मौलिक अधिकार से हटा दिया गया। अब इसे अनुच्छेद 300 (क) के तहत कानुनी अधिकार में रखा गया।
(vii) व्यवसाय करने कि स्वतंत्रता।
अनुच्छेद 20 – इसमें तीन प्रकार कि स्वतंत्रता दी गई है।
(i) एक गलती कि एक सजा
(ii) सजा उस समय के कानून के आधार पर दी जायेगी न कि पहले या बाद के कानून के आधार पर
(iii) सजा के बाद भी कैदी की संरक्षण दिया जाता है।
Note- अनुच्छेद 20 के अनुसार जब तक किसी व्यक्ति को न्यायालय दोशी करार नहीं कर देती है तब तक उसे अपराधी नहीं माना जाता।
अनुच्छेद 21 – इसमें प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता है इसी के कारण अधिक धुआ देने वाले वाहन या बिना हेलमेट वाले व्यक्ति को पुलिस चलान काटती है। अनुच्छेद 21 में ही निजता का अधिकार पर जोड़ दिया गया है। अब हमारी गोपनीय जानकारी को कोई उजागर नहीं कर सकता।
Note- अनुच्छेद 20 तथा 21 को अपातकाल के दौड़ान नहीं रोका जा सकता अतः इसे सबसे शक्तिशाली मुल अधिकार कहते हैं।
अनुच्छेद 21 (क) इसे 6 से 14 वर्ष के बच्चों को निःशुल्क प्राथमिक शिक्षा का अधिकार है। इसे 86वाँ संशोधन (2002) द्वारा जोड़ा गया।
अनुच्छेद 22- इसमें तीन प्रकार की स्वतंत्रता दी गई है जो गिरफ्तारी से संरक्षण (रक्षा) करती है।
(i) व्यक्ति को रिगफ्तार करने से पहले वारंट (कारण) बताना होता है।
(ii) 24 घंटे के अंदर उसे न्यायालय में सह शरीर प्रस्तुत किया जाता है। इस 24 घंटे में यातायात तथा अवकाश का समय नहीं गिना जाता है।
(iii) गिरफ्तार व्यक्ति को अपने पसंद का वकील रखने का अधिकार है।
निवारक विरोध अधिनियम (Privensive Detertion)
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इसकी चर्चा अनुच्छेद 22 के IV में है। इसका उद्देश्य किसी व्यक्ति को सजा देना नहीं बल्कि अपराध करने से रोकना है। इस कानुन के तहत पुलिस शक के आधार पर किसी भी व्यक्ति को बिना कारण बताये अधिकतम तीन महिने तक गिरफ्तार या नजरबंद कर सकती है।
- नजरबंद किसी व्यक्ति को जब समाज से मिलने नहीं दिया जाता है। तो उसे नजरबंद कहते हैं। नजरबंद होटल, आवास या जेल कहीं भी हो सकता है।
भारत में प्रमुख निवारक विरोध अधिनियम
(i) निवारक विरोध अधिनियम 1950 यह भारत का पहला निवारक निरोध अधिनियम है 31 Dec 1972 में इसे समाप्त कर दिया गया।
(ii) MISA (mentinance of Internal security Act) इसे 1971 में लाया गया किन्तु इसका सर्वाधिक दुरउपयोग हुआ जिस कारण 1978 में इसे समाप्त कर दिया गया।
(iii) राष्ट्रीय सुरक्षा कानुन (रासुका) इसे 1980 में लाया गया यह अभी तक लागू है। यह वर्त्तमान में सबसे खरनाक अधिनियम है इसके तहत पुलिस इनकाउंटर कर देती है।
(iv) TADA (Terrorist and Disruptive Activities) इसे 1985 में लाया गया आतंकवादी के विरूद्ध इसे लाया जाता था। दुरउपयोग होने के कारण 23 may 1995 में इसे समाप्त कर दिया गया।
(v) POTA (Prevention of Terrorism Act) यह भी आतंक वादी पर लगाया जाता है। इसे 2001 में प्रारंभ तथा 2004 में समाप्त कर दिया गया।
शोषण के विरूद्ध अधिकार [अनु० 23-24]
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अनुच्छेद 23 – बालात श्रम (जबरदस्ती श्रम) तथा बेरोजगारी (बिना वेतन) पर रोक लगाया गया। किन्तु राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे पर बलात श्रम या बेगारी कराया जा सकता है।
अनुच्छेद 24- 24 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को खतरनाक काम में नहीं लगाया जा सकता।
धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार [अनु० 25-28]
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अनुच्छेद 25 – अंत: करण की चर्चा अर्थात् व्यक्तिगत धार्मिक स्वतंत्रता कि चर्चा है। इसके तहत सिखों को कृपाण (तलवार) मुस्लिमों को दाढ़ी, हिन्दुओं को टिकी रखने की स्वतंत्रता है।
अनुच्छेद 26 – इसमें सामुहिक धार्मिक स्वतंत्रता है। इसी के तहत यज्ञ, हवन, सड़क पर नमाज पढ़ने कि अनुमती है।
अनुच्छेद 27 – धार्मिक कार्य के लिए रखा धन पर टैक्स नहीं लगता।
अनुच्छेद 28 – सरकारी धन से चल रहे संस्थान में धार्मिक शिक्षा नहीं दी जाएगी।
Remark – संस्कृत एक भाषा है। न कि हिन्दु धर्म कि धार्मिक शिक्षा इसी इसी प्रकार उर्दु तथा अरबी एक भाषा है। न कि इस्लाम धर्म कि शिक्षा। अतः सरकारी मदरसा अनुच्छेद 28 का उल्लंघन नहीं है।
संस्कृति एवं शिक्षा संबंधी अधिकार [अनु० 29-30]
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अनुच्छेद 29 [अल्प संख्यकों के हितों का संरक्षण] –
इसमें अल्पसंख्यकों की रक्षा है। और कहा गया है कि किसी भी अल्पसंख्यक को इसकी भाषा या संस्कृति के आधार पर किसी संस्था में प्रवेश से नहीं रोक सकते।
अनुच्छेद 30 – [अल्पसंख्यकों का शिक्षा संरक्षण।
अल्पसंख्यक यदी बहुसंख्यकों के बीच में शिक्षा लेने से संकोच कर रहा है। तो अल्पसंख्यक अपने पसंद कि संस्था खोल सकते हैं। सरकार उसे भी धन देगी।
अनुच्छेद 31 – इसमें पैतृक सम्पत्ति कि चर्चा की गई है। जो मुल अधिकार या किन्तु 44वाँ संविधान संशोधन 1978 द्वारा इसे कानुनी अधिकार बना दिया गया। और अनुच्छेद 300 (क) में जोड़ दिया गया।
Remark – अनुच्छेद 19(VI) में अर्जित सम्पत्ति की चर्चा है। जबकि 31 में पैतृक सम्पत्ति कि चर्चा है।
(ii) मुल अधिकार को हम से सरकार या जनता कोई नहीं छीन सकता जबकि कानुनी अधीकार को जनता नहीं छिन सकती किन्तु सरकार छिन सकती है। इसके लिए सरकार ने भुमि अधिग्रहण विधेयक लाया।
संवैधानिक उपचारों का अधिकार [अनु० 32]
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अनुच्छेद 32 – संवैधानिक उपचार का अधिकार अनुच्छेद 32 को मूल अधिकार को मूल अधिकार बनाने वाला मूल अधिकार कहा जाता है। क्योंकि इसके द्वारा व्यक्ति हनन के मामले पर सिधे सुप्रिम कोर्ट जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट पाँच प्रकार के रिट याचिका या समादेश जारी करती है।
बन्दी प्रत्यक्षीकरण (हवियस कपर्स) यह व्यक्तिगत स्वतंत्रता का सबसे बड़ा रिट है। यह बन्दी बनाने वाली अधिकारी को यह आदेश देती है। कि उसे 24 घंटे के भितर सह शरिर न्यायालय में प्रस्तुत करें।
परमादेश (मेन्डेमस) इसका अर्थ होता है हम आदेश देते हैं। जब कोई सहकारी कर्मचारी अच्छे से काम नहीं करता है। तो उसपे यह जारी किया जाता है।
अधिकार पृच्दा (कोवैरेन्टो) जब कोई व्यक्ति ऐसे कार्य को करने लगे जिसके लिए वह अधिकृत नहीं है। तो उसे रोकने के लिए अधिकार पृच्छा आता है।
अनुच्छेद 352 (राष्ट्रीय आपात ) के दौरान केवल 20 और 21 ही ऐसा अनुच्छेद है। जिसे वंचित नहीं किया जा सकता।
प्रतिषेध (Prohibition) यह उपरी न्यायालय अपने से निचली न्यायालय पर तब लाती है। जब निचली न्यायालय अपने अधिकारों का उलंघन करके फैसला सुना चुकी रहती है।
उत्प्रेषण (Certiorari) यह भी उपरी न्यायालय अपने से निचली न्यायालय पर तब लाती है। जब निचली न्यायालय अपने अधिकार का उलंघन करके फैसला सुना चुकी रहती है
अनुच्छेद 33- राष्ट्रीय सुरक्षा के हित में संसद सेना मीडिया तथा गुप्तचर के मुल अधिकार को सीमित कर सकती है।
अनुच्छेद 34- भारत के किसी भी क्षेत्र में सेना का कानुन (Marshallaw) लागू किया जा सकता है। सेना के न्यायालय को Court Marshal कहते हैं। सबसे कठोर Marshal law AFSPA है। [Axnel Forces Special Power Act]
अनुच्छेद 35 भाग-3 में दिए गए मुल अधिकार के लागू होने के विधि की चर्चा।
Note-
- अनुच्छेद 15, 16, 19, 29 एवं 30 केवल भारतीयों को मिलता है।
- अनुच्छेद 14, [20, 21, 21A], [23, 24], [25-28] भारतीय तथा विदेशीयों दोनों के लिए।
- हड़ताल करना तथा चक्का जाम करना मुल अधिकार नहीं है क्योंकि इससे अन्य व्यक्तियों के मूल अधिकार का हनन हो जाता है।
- स्थायी आवास तथा अनिवार्य रोजगार मूल अधिकार नहीं है।
- वोट डालने का अकिधार राजनीतिक अधिकार है मूल अधिकार नहीं।
- मूल अधिकार को कुछ समय के लिए राष्ट्रपति निलंबित करते हैं।
- SC मूल अधिकार को स्थायी रूप से प्रतिबंधित संसद करती है। मूल अधिकार का रक्षक तथा को कहते हैं।
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मौलिक अधिकार से संबंधित प्रश्न प्रतियोगी परीक्षाओं में विभिन्न रूपों में पूछे जा सकते हैं। नीचे कुछ प्रमुख प्रकार के प्रश्नों का उल्लेख दिया गया है
- संविधान के अनुच्छेद III के मौलिक अधिकार: प्रश्न इस पर किया जा सकता है कि मौलिक अधिकार किस अनुच्छेद में स्थित हैं और ये कितने हैं।
- मौलिक अधिकारों की सूची: प्रश्न इस पर किया जा सकता है कि कौन-कौन से अधिकार भारतीय संविधान में शामिल हैं।
- मौलिक अधिकारों की प्रमुख विशेषताएं: इस परीक्षा में पूछे जा सकते हैं कि मौलिक अधिकारों की मुख्य विशेषताएं क्या हैं और उनका महत्व क्या है।
- मौलिक अधिकारों का प्रयोग: प्रश्न इस पर किया जा सकता है कि व्यक्ति के मौलिक अधिकारों का प्रयोग कैसे किया जाता है और उन्हें कैसे संरक्षित किया जाता है।
- मौलिक अधिकारों की प्रतिबंधितता: प्रश्न इस पर किया जा सकता है कि क्या मौलिक अधिकारों को किसी स्थिति में प्रतिबंधित किया जा सकता है और कैसे।
- मौलिक अधिकारों के प्रभाव: प्रश्न इस पर किया जा सकता है कि मौलिक अधिकारों के अनुपालन का समाज पर क्या प्रभाव होता है।
- मौलिक अधिकारों के संबंधित मुद्दे: प्रश्न इस पर किया जा सकता है कि वर्तमान समय में मौलिक अधिकारों से संबंधित कौन-कौन से मुद्दे हैं और इनका समाधान क्या हो सकता है।
- मौलिक अधिकारों के उल्लंघन: प्रश्न इस पर किया जा सकता है कि मौलिक अधिकारों के उल्लंघन के प्रमुख कारण क्या हो सकते हैं और इसका समाधान कैसे हो सकता है।
ये केवल कुछ उदाहरण हैं। प्रतियोगी परीक्षाओं में प्रश्न विभिन्न स्तरों पर पूछे जा सकते हैं, जिसमें आपको मौलिक अधिकारों के सिद्धांत, प्रयोग, महत्व, और प्रभाव के प्रति समग्र ज्ञान होना चाहिए।
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