Uttarakhand current affairs 1 नैनीताल आग पर वायुसेना का ऑपरेशन बांबी बकेट

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नैनीताल आग पर वायुसेना का ऑपरेशन बांबी बकेट ( Uttarakhand current affairs 1)

बांबी बकेट क्या है? ( Uttarakhand current affairs 1 )

Uttarakhand current affairs नैनीताल आग पर वायुसेना का ऑपरेशन बांबी बकेट

बांबी बकेट (Bambi Bucket) एक विशेष हवाई अग्निशमन साधन होता, बांबी बकेट एक प्रकार की बड़े आकार की बाल्टी होती है, जिसे मजबूत तारों की मदद से हेलिकॉप्टर से लटकाया जाता है ,

इस बाल्टी के बेस में एक वाल्व लगा होता है, जिसे हेलिकॉप् वैमानिकाद्वारे नियंत्रित किया जाता है। बांबी बकेट का उद्देश्य आग बुझाने में मदद करना होता है। यह हेलिकॉप्टर बाल्टी भी कहलाता है

बांबी बकेट के माध्यम से आग बुझाने में मदद की जाती है। यह बादली तलाव और जलतरण तलावांसह विविध स्त्रोतांमें से पानी भरकर आग लागने वाले स्थान पर पहुँचाने में सहायक होता है , बांबी बकेट का शोध SEI इंडस्ट्रीज ने किया था और यह हेलिकॉप्टर बाल्टी के रूप में उपलब्ध होता है

वायु सेना का बांबी बकेट (Bambi Bucket) अभियान ( Uttarakhand current affairs 1 )

उत्तराखंड के नैनीताल के जंगलों में विनाशकारी आग लगने के बाद, भारतीय वायु सेना ने जंगल की आग बुझाने के लिए एक एमआई-17 वी 5 हेलीकॉप्टर तैनात किया।

हेलीकॉप्टर ने नैनीताल के पास भीमताल झील से पानी जमा किया और जलते जंगलों पर डालने के लिए ‘बांबी बाल्टी’ का इस्तेमाल किया, जिसे हेलीकॉप्टर वाल्टी भी कहा जाता है।

उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने के कारण ( Uttarakhand current affairs 1)

उत्तराखंड के जंगलों में आग लगने के कई कारण हो सकते हैं। यहां कुछ मुख्य कारण हैं:

चीड़ के पेड़ों का प्रयोगः उत्तराखंड के जंगलों में चीड़ के पेड़ों का प्रयोग आग के फैलने के लिए एक मुख्य कारण हो सकता है।

चीड़ की पत्तियों में तेल होता है जो ज्वलनशील होता है। इससे आग तेजी से फैल सकती है।

मानव दखलः अक्सर गांव के लोग जंगल में जमीन पर गिरी पत्तियों या सूखी घास में आग लगा देते हैं

ताकि उसकी जगह पर नई घास उग सके। यह आग भड़क जाने पर बेक़ाबू हो जाती है।

अपर्याप्त बारिशः उत्तराखंड में सर्दियों में बारिश की कमी होने के कारण जंगलों में पहले पर्याप्त नमी की कमी हो जाती है।

इससे जंगलों में आग लगने की संभावना बढ़ जाती है। यह आपदा जैव विविधता, पर्यावरण और वन्य जीवों के लिए भारी नुक़सान कर सकती है।

वन विभाग नियमित तौर पर आग को रोकने के लिए तैयारियां करता है, लेकिन इस आपदा को रोकने के लिए हम सभी की जिम्मेदारी है।

उत्तराखंड के जंगलों में आग से कैसे बचा जा सकता है ?

वनाग्नि से बचने के लिए उत्तराखंड में निम्नलिखित उपायों का पालन करना अत्यंत महत्वपूर्ण है:

  1. जागरूकता और सतर्कताः
  • लोगों को वनाग्नि की जागरूकता बढ़ानी चाहिए।
  • जंगलों में जाने से पहले आग की संभावना को समझें और सतर्क रहें।
  1. वन विभाग के साथ सहयोगः
  • वन विभाग के अधिकारियों की सूचनाओं पर तत्काल कार्रवाई करने के निर्देश दें।
  • वन विभाग के ड्रोन कैमरे और अन्य तकनीकी साधनों का उपयोग करें।
  1. वनाग्नि को रोकने के उपायः
  • खेतों में खर पतवार जलाने से बचें।
  • पिकनिक जाने से परहेज करें।
  • शादी-विवाह कार्यक्रमों में जाने से पहले भी जंगलों के आग के प्रति सजग रहें।
  1. वनाग्नि की घटनाओं की सूचना दें:
  • जंगलों में आग लगने की सूचना को तत्काल कार्रवाई करने के लिए अधिकारियों को जरूर दें।

उत्तराखंड वनाग्नि रिपोर्ट

30 जून 2019 तक उपलब्ध आंकडों के अनुसार,

  • 2158 वनाग्नि की घटनाएं हुई,
  • जिनमे 2981.55 हेक्टेयर वन भूमि जल कर खाक हो गई.
  • इन हादसों में 15 लोग घायल हुए1 व्यक्ति और 6 वन्यजीवों की मौत हो गई थी

साल 2020 में कुछ हद तक आंकड़े गिरे. 23 जून तक उपलब्ध डेटा के अनुसार, 135 बनाग्नि घटनाएं हुई हैं.

  • 72.69 हेक्टेर भूमि वनाग्नि से भस्म हो गई थी. इन घटनाओं में 2 लोगों की मौत हुई,
  • 1 व्यक्ति पायल हुआ और किसी वन्यजीव की मौत दर्ज नहीं हुई है. आग से4 लाख 44 हजार का नुकसान हुआ था.

23 जुलाई 2021 तक उपलब्ध डेटा के अनुसार, वनाग्नि ने एक बार फिर विकराल रूप लिया

  • 2813 घटनाओं में 3944 हेक्टेयर वन भूमि को आग निगल गई.
  • 8 लोगों की मौत और 3 लोग घायल हुए थे. वहीं 29 वन्यजीवों की मौत और 24 घायल हुए थे.
  • आग से 1 करोड़ 6 लाख का नुकसान हुआ था और 1 लाख 20 हजार पेड़ नष्ट हो गए थे,

29 नवम्बर 2023 तक का डेटा बताता है कि 73 वनाग्नि की घटनाएं हुई 933 हेक्टेयर भूमि जल गई,

  • 3 लोग घायल हुए 3 लोगों की मौत हुई,
  • वन्यजीवों का आंकड़ा शून्य रहा था. आग से 23 लाख 97 हजार का राजस्य नुकसान हुआ था.
  • वहीं 15000 पेड पौधे नष्ट हो गए थे.

साल 2024 में अब तक 650 से ज्यादा घटनाओं में करीब 800 हेक्टेयर भूमि जल चुकी है.

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