औरंगज़ेब (Aurangzeb ) notes in hindi धार्मिक/दक्षिण नीति औरंगज़ेब mcq
HISTORY MCQ

औरंगज़ेब (Aurangzeb ) notes in hindi /धार्मिक/ दक्षिण नीति / औरंगज़ेब mcq

औरंगज़ेब (Aurangzeb ) notes in hindi/ धार्मिक नीति / दक्षिण नीति दोस्तों स्वागत है आपका हमारे इतिहास के नोट्स सीरिज मैं आज हम आपको मुग़ल वंश के महत्वपूर्ण शासक औरंगज़ेब (Aurangzeb ) के बारे मैं जानकारी देंगे हमारे द्वारा यह जानकारी विभिन्न प्रकार की पुस्तको से प्राप्त की गयी है

जन्म- 24 अक्टूबर, 1618 ई० में
जन्म स्थान- दोहद (उज्जैन के पास)।
पूरा नाम – मुहीउद्दीन मुहम्मद औरंगजेब ।
माता- मुमताज महल ।
पिता – शाहजहाँ
उपाधि- बहादुर (शाहजहाँ द्वारा दिया गया)।
राज्याभिषेक दो बार पहला- 21 जुलाई, 1658 ई०,
दूसरा- 15 जून, 1659 ई०

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औरंगजेब का परिवार:-

✪ औरंगजेब की पलियाँ – दिलरास बेगम (रबिया उद् दौरानी) औरंगजेब की प्रथम पत्नी थी। आजम (1653 ई.) और अकबर (1657 ई.) दिलरास बेगम से उत्पन्न औरंगजेब के पुत्र थे।

मुअज्जम औरंगजेब का सबसे बड़ा जीवित पुत्र था। मुअज्जम का जन्म 1643 ई. में नवाब बाई के गर्भ से हुआ। नवाब बाई राजौरी के राजा की पुत्री थी।

✪ कामबख्श औरंगजेब का सबसे छोटा पुत्र था। कामबख्श का जन्म 1667 ई. में उदयपुरीमहल ( एक जॉर्जियाई दासी) के गर्भ से हुआ।

✪ 13 जनवरी, 1709 को मुअज्जम तथा कामवख्श के बीच हुए युद्ध में कामबख्श पराजित हुआ व मारा गया।

✪ औरंगाबादी महल एवं उदयपुरी महल भी औरंगजेब की पत्नी थी और हीराबाई उसकी रखैल थी।

✪ जेबुन्निसा, मेहरूनिसा, जीनतनिसा, बदरूनिसा एवं जुबदउनिसा औरंगजेब की पुत्रियाँ थी।

✪ औरंगजेब के दो पुत्रों मुहम्मद सुल्तान (नवाब बाई से 1637 ई. में जन्म) तथा अकबर की मृत्यु औरंगजेब के जीवनकाल में ही हो गई थी।

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✪ औरंगजेब कट्टर सुन्नी मुसलमान था। उसने सिक्कों पर कलमा खुदवाना, नौरोज का त्योहार मनाना, तुलादान व झरोखा दर्शन बन्द कर दिया।

1663 ई. में सती प्रथा पर प्रतिबंध लगा दिया। अकबर ने भी इसके लिए प्रयास किए थे व कोतवाल को आदेश दिये कि किसी को इच्छा के विरुद्ध सती न होने दिया जाये, किन्तु औरंगजेब ने सती प्रथा को पूर्णतः प्रतिबन्धित कर दिया।

✪ 1663 ई. में हिन्दुओं पर तीर्थ यात्रा कर लगा दिया।

✪ औरंगजेब ने 1665 ई. में एक राज्यादेश द्वारा मुस्लिम व्यापारियों पर ढाई व हिन्दू व्यापारियों 5 प्रतिशत सीमा शुल्क निर्धारित किया। 1667 ई. में मुस्लिम व्यापारियों को सीमा शुल्क से पूर्णतः मुक्त कर दिया, लेकिन बाद में पुनः लगा दिया।

✪ 1668 ई. से ही राजपूतों एवं मराठों को छोड़कर सभी हिन्दुओं को पालकी या अच्छे घोड़ों की सवारी पर प्रतिबंध लगा दिया तथा हथियार रखने पर भी प्रतिबंध लगा दिया।

✪ औरंगजेब ने वेश्याओं को देश छोड़ने के आदेश दिये तथा दरबार में 1668 ई. से होली व दीपावली मनाने पर प्रतिबंध लगा दिया।

✪ औरंगजेब ने झरोखा दर्शन की प्रथा 1669 ई. में अपने शासन के 11वें वर्ष में बन्द कर दी।

✪ 1669 ई. में बनारस फरमान द्वारा हिन्दू मन्दिरों व पाठशालाओं को तोड़ने की आज्ञा दी। 1669 ई. में बनारस का विश्वनाथ मंदिर, मथुरा का केशवदेव मंदिर (वीरसिंह बुन्देला द्वारा निर्मित) तथा गुजरात का सोमनाथ मंदिर तोड़ा गया।

✪ औरंगजेब ने मथुरा के दाउजी महाराज मन्दिर को 5 गाँव एवं बनारस के मन्दिरों को भू अनुदान दिया था।

✪ 1669 में मुहर्रम बन्द करवा दिया तथा 1670 ई. में अपना जन्मदिवस मनाना भी बन्द करवा दिया।

✪ 1679 ई. में हिन्दू शासकों को टीका देने की प्रथा बन्द कर दी। औरंगजेब ने गाजी की उपाधि धारण की, जो उसकी असहिष्णु व जेहादी मनोवृत्ति का प्रतीक था।

✪ हिन्दुओं को नौकरी देने के सन्दर्भ में उनका कहना था- “दुनियाबी मामलों में धर्म का क्या लेना देना” ।

✪ औरंगजेब को इस्लामिक कट्टरता के कारण जिन्दा पीर तथा सादगी पूर्ण जीवन के लिए ‘शाही दरवेश’ कहा जाता था। औरंगजेब कठोरतम मुगल शासक था।

✪ औरंगजेब ने गुरुवार की रात को पीरों की मजार तथा कब्रों पर दीपक जलाने की प्रथा पर रोक लगा दी।

✪ हिन्दू बैरागी शिवमंगल दास महाराज का तत्व मीमांसा पर प्रवचन सुनने जाता था।

✪ औरंगजेब के शासन काल में हिन्दू मनसबदारों का प्रतिशत 33 प्रतिशत हो गया था। यह मुगलकाल में सर्वाधिक था। इनमें भी सबसे ज्यादा मराठा व दक्षिण के अमीर थे।

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✪ औरंगजेब ने मुहतसिबों की नियुक्ति की, जो मुसलमानों के धर्म (शरियत ) आचरण की देखरेख करते थे। मुल्ला औजवाजीह पहला मुहतसिब था।

✪ मुहतसिब के अन्य कार्य जुआघरों एवं वेश्यावृत्ति को रोकना, माप और तौल की निगरानी करना, सार्वजनिक स्थानों पर मादक द्रव्यों के प्रयोग को रोकना, हिन्दू मन्दिरों एवं पाठशालाओं को नष्ट करना तथा मिल्लत (मुस्लिम प्रजा) के नैतिक चरित्र की देखभाल करना था, किन्तु मुहतसिब नागरिकों के व्यक्तिगत जीवन में हस्तक्षेप नहीं करते थे।

✪ साम्राज्य में भांग उत्पादन, शराव व जुआ खेलने पर प्रतिबंध लगाया।

1679 ई. में सभी हिन्दुओं पर जजिया कर लगा दिया।

✸ जजिया सर्वप्रथम मारवाड़ में लागू किया जिसे औरंगजेब ने दारूल हर्ब घोषित किया था।

✸ जजिया कर लगाने का मेवाड़ शासक राजसिंह के नेतृत्व में राजपूतों ने विरोध किया। इटली के यात्री मनूची ने इसका वर्णन किया है।

✸ जहांआरा बेगम ने जजिया लागू करने का विरोध किया था।

✸ जजिया की वसूली के लिए गैर मुसलमानों को तीन श्रेणियों में विभाजित किया था-

  1. प्रथम श्रेणी के लिए 48 दिहरम (12 रूपया),
  2. द्वितीय श्रेणी के लिए 24 दिहरम (6 रूपया)
  3. तृतीय श्रेणी के लिए 12 दिहरम (3 रूपया)।

✸ मनूची जजिया लगाने का मुख्य कारण रिक्त राजकोषबताता है।

✸ 1704 ई. में दक्कन से जजिया कर हटाना पड़ा।

औरंगजेब के जजिया कर लगाने का उद्देश्य धार्मिक न होकर राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित था क्योंकि वह राजपूतों व मराठों के विरुद्ध मुसलमानों को संगठित करना चाहता था।

✸ औरंगजेब की जजिया लगाने की धार्मिक नीति का प्रमुख उद्देश्य भारत को ‘दार-उल हर्ब’ के स्थान पर ‘दार-उल-इस्लाम’ बनाना था।

✸ औरंगजेब की धार्मिक नीति के कारण मुगल साम्राज्य का पतन हुआ।

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विजय अभियान:

  1. असम एवं पूर्वी भारत:-

औरंगजेब का प्रथम अभियान असम (कामरूप) के अहोम शासकों पर हुआ, जिनके साथ औरंगजेब का लम्बा संघर्ष हुआ।

☛ औरंगजेब ने 1660 ई. में मीर जुमला को बंगाल का गवर्नर बनाकर भेजा जिसने 1661 ई. में कूच बिहार व 1662 ई. में अहोम को मुगलों की अधीनता स्वीकार करने की सन्धि मानने को बाध्य किया।

☛ मीर जुमला का वास्तविक नाम मुहम्मद सईद था।

☛ 1662 ई. में मुगल सूबेदार मीर जुमला ने असम के शासक जयध्वज को सिख गुरु तेगबहादुर के माध्यम से सन्धि के लिए विवश किया, लेकिन 1667 ई. में चक्रध्वज ने पुनः मुगलों से अपने इलाके छीन लिए।

☛ 1671 ई. में अहोमों ने मुगलों से अपने इलाके दुबारा छीन लिए। अहोम पर मीर जुमला के अभियान का वर्णन मिर्जा मुहम्मद काजिम के ‘आलमगीरनामा’ में है।

☛ मिर्जा नाथन ने 17वीं शताब्दी में बहारिस्तान-ए-गैबी लिखा, जिसमें बंगाल, असम, कूच बिहार, बिहार एवं उड़ीसा में मुगलों द्वारा किए गए युद्धों का इतिहास है।

☛ 1663 ई. में मीर जुमला की मृत्यु के बाद शाइस्ता खाँ (औरंगजेब का मामा) को बंगाल का गवर्नर बनाया। इसने 1666 ई. में पुर्तगालियों पर आक्रमण किया तथा अराकान के शासक से चटगांव एवं सोनद्वीप जीता तथा चटगांव का नाम इस्लामाबाद रखा।

☛ 1686 ई. में औरंगजेब ने अंग्रेजों को हुगली से बाहर खदेड़ दिया।

☛ औरंगजेब के समय पहली बार लद्दाख जीतकर वहाँ मस्जिद का निर्माण किया गया

औरंगजेब के दक्षिण अभियान व नीति :-

औरंगजेब 1636 ई. से 1644 ई. तक आठ वर्ष तक दक्षिण का सूबेदार रहा। औरंगाबाद दक्षिण सूबे की मुगलों की राजधानी थी। अतः औरंगजेब को दक्षिण की स्थिति का अच्छा ज्ञान था।

➠ औरंगजेब दक्षिण के स्वतंत्र मुस्लिम राज्यों बीजापुर व गोलकुण्डा का स्वतंत्र अस्तित्व समाप्त करना चाहता था क्योंकि मराठों की शक्ति समाप्त करने के लिए बीजापुर व गोलकुण्डा को समाप्त करना जरूरी था।

बीजापुर :-

➠ औरंगजेब ने दिलेर खाँ को दक्षिण का सूबेदार नियुक्त किया। दिलेर खाँ ने बीजापुर के मंत्री सिद्धि मसूद को अपनी तरफ मिलाकर बीजापुर को आत्मसमर्पण की सन्धि मानने के लिए सहमत किया।

➠ सितम्बर, 1686 में बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया तथा बीजापुर के सुल्तान सिकन्दर आदिल शाह को खान का पद व 1 लाख रुपए वार्षिक पेंशन दी गई। सिकन्दर की बहिन शहरबानू की शादी औरंगजेब के लड़के शाहजादे आजम से हुई।

गोलकुण्डा:-

➠ 1687 ई. में गोलकुण्डा भी मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया। गोलकुण्डा बड़े हीरों की बिक्री का विश्व प्रसिद्ध केन्द्र था ।

➠ मदना एवं अखना नामक दो भाईयों का गोलकुण्डा के शासक अबुल हसन कुतुबशाह पर अत्यधिक प्रभाव था। अबुल हसन गोलकुण्डा विलय के समय शासक था।

गोलकुण्डा के सेनापति अब्दुर्रज्जाक लारी की वीरता से औरंगजेब अत्यधिक प्रभावित हुआ एवं उसे मुगल सेवा में ले लिया गया।

➠ अब्दुला गनी नामक अफगान ने विश्वासघात करके गोलकुण्डा के किले का फाटक खोल दिया, जिससे किले पर आसानी से फतेह हो गई।

➠ औरंगजेब ने अबुल हसन को बंदी बनाकर दौलताबाद के किले में भेज दिया।

➠ औरंगजेब द्वारा दक्षिण में जीता गया अन्तिम दुर्ग बाजिन्गेरा (वजनजीरा) था।

➠ मुगलकाल में बीजापुर एवं गोलकुण्डा के शासकों को तरफदार कहा जाता था।

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औरंगजेब व मराठे:-

➠ मराठों को अहमदनगर, बीजापुर व गोलकुण्डा के शासकों ने अपनी सेना में भर्ती करना शुरू किया।

➠ स्वतंत्र रूप से मराठों का मुगलों से पहला संघर्ष 1657 ई. में तब हुआ जब शिवाजी ने अहमदनगर व जुन्नार के किले पर आक्रमण किया।

➠ औरंगजेब के विरुद्ध मराठों की चार पीढ़ियों ने युद्ध किया। शिवाजी (1640-80 ई. तक ) शाम्भाजी (1680-89 ई.), राजाराम (1689-1700 ई.) एवं उसकी विधवा ताराबाई ( 1700-1707ई.)।

➠ 1660 ई. में शाइस्ता खाँ (दक्षिण का मुगल सुबेदार) ने शिवाजी पर आक्रमण किया तथा पूना, शिवपुर व चाकन आदि किलों पर अधिकार कर लिया।

➠ 1663 ई. में शिवाजी ने पना में शाइस्ता खाँ के महल पर चुपके से आक्रमण कर दिया। इसमें शाइस्ता खाँ का अंगूठा कट गया।

आमेर के मिर्जा राजा जयसिंह को औरंगजेब ने 1665 ई. में शिवाजी के दमन के लिए भेजा। जयसिंह ने शिवाजी को 24 जून, 1665 को पुरन्दर की सन्धि के लिए बाध्य किया।

➠ पुरन्दर की सन्धि के दौरान मनूची भी उपस्थित था।

➠ 1666 ई. में शिवाजी आगरा के किले में दीवाने आम में भी उपस्थित हुआ। शिवाजी को कैद कर जयपुर भवन में नजरबंद रखा गया किन्तु वे चकमा देकर फरार हो गये।

➠ शिवाजी का पुत्र शम्भाजी सगमेश्वर के युद्ध के बाद 1689 इ. मैं मुगलों द्वारा पकड़ा गया तथा शम्भाजी व उसके कान्यकुब्ज के ब्राह्मण मंत्री कवि कलश को इस्लाम स्वीकार न करने पर मार्च 1689 ई. में मार दिया।

➠ औरंगजेब 1682 ई. से अपनी मृत्युपर्यन्त दक्षिण में ही रहा और एस. आर. शर्मा के अनुसार दक्षिण भारत औरंगजेब के लिए कब्रिस्तान सिद्ध हुआ।

➠ यदुनाथ सरकार के अनुसार जिस प्रकार स्पेन के नासूर ने नेपोलियन को बर्बाद कर दिया, उसी दक्कन के नासूर ने औरंगजेब को नष्ट कर दिया।

➠ दक्षिण अभियान के 25 वर्षों में औरंगजेब ने अपने बेहतरीन सेनापति, सैनिक व धन खोया, जिससे साम्राज्य की सैनिक शक्ति व अर्थव्यवस्था कमजोर हो गई।

औरंगजेब को दक्कन का सम्राट कहा जाता था।

➠ दक्षिण में विद्रोहों का दमन करते हुए व मराठों के विरुद्ध लड़ते हुए ही 3 मार्च, 1707 ई. को अहमदनगर के पास औरंगजेब की मृत्यु हो गई।

➠ औरंगजेब के शव को दौलताबाद से 4 किमी दूर खुल्दाबाद में फकीर बुरहानुदीन (शेख जैन-उल-हक ) की मजार के पास दफना दिया गया।

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✍️ औरंगजेब फारसी लिपि नस्तालीक एवं शिकस्त लिखने में निपुण था। औरंगजेब ने सुन्दर लेखन को संरक्षण दिया।
✍️ औरंगजेब एकमात्र मुगल बादशाह था जिसका दो बार राज्याभिषेक हुआ।
✍️ अपने शासनकाल में निरन्तर युद्ध करने के कारण औरंगजेब ज्यादा भवनों का निर्माण नहीं करा सका।
✍️ औरंगजेब के चरित्र की मुख्य कमजोरी उसका अविश्वासी होना था।
✍️ औरंगजेब की नीतियों से राजकोष रिक्त हो गया।
✍️ औरंगजेब कट्टर धार्मिक मुसलमान होते हुए भी पाँचों वक्त की नमाज
एक साथ अदा करता था।
✍️ औरंगजेब के काल में मुगल साम्राज्य का क्षेत्रीय विस्तार सर्वाधिक था।
✍️ इटली का वैद्य गमेली करेरी औरंगजेब के काल में भारत आया। उसने 1695 ई. में औरंगजेब को देखा व औरंगजेब के अन्तिम वर्षों का सुन्दर वर्णन किया है।
✍️ मुगलकाल में औरंगजेब के काल में सबसे विशाल व कुशल तोपखाना था।
✍️ गंज-ए-सवाई:- औरंगजेब के पास गंज-ए-सवाई नामक जलपोत था, जो 80 तोपों व 400 तोड़ीदार बन्दूकों से सुसज्जित था। इसे समुद्री डाकू कैप्टन अवेरी ने पकड़ लिया था।

औरंगजेब के समय हुए विद्रोह

जाटों का विद्रोह :-

☛ औरंगजेब के खिलाफ पहला संगठित विद्रेह मथुरा-आगरा व दिल्ली के आस-पास बसे जाटों ने किया। जाटों ने आर्थिक कारणों से विद्रोह किया।

☛ जाट विद्रोह में अधिकतर किसान थे, जिनका नेतृत्व मुख्यतः जमीदारों ने किया।

☛ जाट विद्रोह की शुरुआत 1669 ई. में मथुरा के पास तिलपत के जाट जमींदार गोकुला के नेतृत्व में हुई। गोकुला जाट ने मथुरा के सूबेदार अब्दुनबी को मार डाला।

☛ तिलपत के युद्ध में मुगल फौजदार हसन अली खाँ ने गोकुला को बन्दी बनाकर मार डाला।

☛ जाट विद्रोह को सतनामियों ने भी समर्थन दिया।

☛ 1685 ई. में राजाराम के नेतृत्व में जाटों ने अधिक संगठित रूप से दूसरा विद्रोह किया। इसमें जाटों ने छापामार युद्ध प्रणाली अपनाई।

☛ राजाराम ने सिकन्दरा स्थित अकबर के मकबरे को लूटा व अकबर की कब्र से हड्डियां निकाल कर उन्हें जला दिया।

☛ 1688 ई. में अकबर के पोते बीदर बख्श व आमेर के राजा विशन सिंह ने राजाराम को पराजित किया।

☛ 1688 ई. में राजाराम की मृत्यु के बाद उसके भतीजे चूड़ामन ने जाटों का विद्रोह औरंगजेब की मृत्यु तक जारी रखा।

☛ चूड़ामन ने ‘भरतपुर’ के स्वतंत्र जाट राज्य की स्थापना की। परन्तु वास्तविक जाट शक्ति को चूड़ामन के भाई भावसिंह के पुत्र बदनसिंह ने एकत्रित किया। चूडामन के विद्रोह का केन्द्र थीम था।

शाहजादा अकबरका विद्रोह :-

☛ मेवाड़ व मारवाड़ के दुर्गादास के सहयोग से शहजादा अकबर ने 1681 ई. में अपने को बादशाह घोषित कर दिया तथा औरंगजेब की सेना पर अजमेर के पास आक्रमण किया।

☛ पराजित होकर अकबर दुर्गादास के साथ दक्षिण में शम्भाजी की शरण में गया एवं पाली नामक गाँव में शम्भाजी से मिला, किन्तु अन्त में फारस भाग गया, जहाँ उसकी 1706 ई. में मृत्यु हो गई।

☛ औरंगजेब ने अपनी पुत्री जेबुन्निसा को निवांसित करके दिल्ली भेज दिया क्योंकि वह विद्रोही शहजादे अकबर के साथ पत्र व्यवहार करती थी। दिल्ली में जेबुन्निसा ने एक पुस्तकालय ‘बैत-उल-उलूम’ की स्थापना की थी।

☛ औरंगजेब ने अपने पुत्र अकबर को भारत को व्याकुल करने वाला कहा है।

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सिक्ख विद्रोह :-

सिक्खों ने औरंगजेब के खिलाफ सबसे अन्त में विद्रोह किया।

☛ सिक्ख विद्रोह औरंगजेब के काल में एकमात्र विद्रोह था, जो धार्मिक कारणों से हुआ।

औरंगजेब ने 1675 ई. में नवें सिक्ख गुरू तेगबहादुर को इसलिए मृत्युदण्ड दे दिया कि उसने औरंगजेब की धार्मिक नीतियों का विरोध किया था। इसके बाद सिक्ख विद्रोह शुरू हुआ। जहाँ दिल्ली में गुरु तेगबहादुर को मृत्युदण्ड दिया गया, वहाँ गुरुद्वारा शीशगंज बना हुआ है।

☛ गुरु गोविन्द सिंह ने सिक्ख विद्रोह जारी रखा तथा मखोवल के पास आनन्दपुर में अपना मुख्यालय बनाया। उसने सिक्खों को सैनिक संप्रदाय में परिवर्तित कर, उसका नाम खालसा रख दिया। खालसा की स्थापना 1699 ई. में हुई।

☛ 1704 ई. में गुरु गोविन्द सिंह ने औरंगजेब के पास जफरनामा नाम के पत्रों का संकलन फारसी भाषा में भेजा था।

☛ औरंगजेब की मृत्यु के बाद गुरु गोविन्द सिंह से औरंगजेब के पुत्र बहादुरशाह प्रथम ने अपने भाइयों के विरुद्ध सहायता मांगी। इसके लिए वे दक्षिण गए जहां गोदावरी नदी के किनारे ‘नांदेड़’ नामक स्थान पर एक अफगान ने उन्हें चाकू से जख्मी कर दिया। दो माह बाद उन्होंने अपना अन्त निकट जानकर 7 अक्टूबर, 1708 ई. को अपना शरीर चिता को सौंप दिया।

☛ कवि खुशाल खां खटक ने 1675 ई. में विद्रोह कर दिया।

औरंगजेब के अन्तिम दिन और मृत्यु-

औरंगजेब का अन्तिम समय बहुत ही कष्टदायी रहा उसके अनेक सगे सम्बन्धी उससे पूर्व ही मर चुके थे। 3 मार्च, 1707 ई० को प्रातःकाल की नमाज सम्पन्न करने के बाद अहमदनगर में औरंगजेब की मृत्यु हो गयी। उसके शव को दौलताबाद स्थिति खुलदाबाद नामक स्थान पर ले जाया गया जहाँ पर प्रसिद्ध सूफी शेख बुरहानुद्दीन के मकबरे के चहार दीवारी के अन्दर उसे दफनाया गया।

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