akbar history in hindi (अकबर का सम्पूर्ण इतिहास)
akbar history in hindi (अकबर का सम्पूर्ण इतिहास) Medieval India Notes PDF /अकबर का सम्पूर्ण इतिहास) दोस्तों आज का हमारा टॉपिक है अकबर का सम्पूर्ण इतिहास) जो की मध्यकालीन इतिहास का एक बहुत ही महत्वपूर्ण टॉपिक होता है और इस टॉपिक से विभिन्न परीक्षाओ मैं सवाल पूछे जाते है तो हमने इससे सम्बंधित महत्वपूर्ण बिन्दुओ पर चर्चा की है जो आपके आने वाले प्रतियोगी परीक्षाओ के लिए बहुत ही उपयोगी साबित होंगे |
👉 अकबर का जन्म 15 अक्टूबर 1542 को अमरकोट के राजा वीरसाल के महल में हुआ था अकबर की मां हमिदा बानो बेगम थी। इसकी (धाय माँ = माहम अनगा थी)
👉 अकबर को बचन में अस्करी ने पाला और फिर काबुल में कामरान के पास भेज दिया 1547 से अकबर हुमायूं के साथ रहने लगा अकबर की प्रथम पत्नी हिंदाल की पुत्री रूकैया थी।
👉 1555 ई. में हुमायुं जब भारत पर पुनः आक्रमण किया और मच्छीवाड़ा का युद्ध लड़ा। इस युद्ध में हुमायुं के साथ अकबर भी भाग लिया। यह युद्ध अकबर के जीवन का पहला युद्ध था। 1555 में हुमायूं ने अकबर को अपना उत्तराधिकारी बनाकर लाहौर का सूबेदार बनाया।
👉 1556 में जब हुमायूँ की मृत्यु हुई तब अकबर पंजाब का सूवेदार था। 17 दिन तक हुमायूं की मृत्यु को गुप्त रखा गया । 14 फरवरी, 1556 को पंजाब से कालानौर (गुरुदासपुर) में मिर्जा अब्बुल कासिम ने अकबर का राज्याभिषेक कराया।
👉 राज्याभिषेक के समय अकबर अल्पायु था अतः वैरम खान को अकबर का संरक्षक नियुक्त कर दिया गया। वैरन खान अकबर को लेकर आगरा की ओर बढ़ा किन्तु इससे पहले ही आदिल शाह सूरी का सेनापति हेमू आगरा पर अधिकार कर लिया। साथ ही साथ हेमू ने दिल्ली पर भी अधिकार कर लिया। हेमू दिल्ली का एक बनिया था जिसने विक्रमादित्य का उपाधि धारण किया था।
👉 दिल्ली में मुगल सेनापति तरवीवेग ने वैरम खां को भारत छोड़ने की सलाह दिया जिस कारण वैरम खान ने उसकी हत्या कर दी।
👉 1556 के पानीपत के द्वितीय युद्ध में अकबर के सेना का नेतृत्व – वैरम खान ने किया और इस युद्ध में वैरम खान ने हेमू को कर दिया।
👉 यह युद्ध अकबर का शासक बनने के बाद पहला युद्ध था।
👉 अकबर ने वैरम खान के संरक्षण में शासन आरम्भ किया जिस कारण वैरम खां अत्यधिक प्रसिद्ध हो गया। वैरम खान की ईमानदारी को देखकर अकबर ने उसे खान-ए-खाना की उपाधि सम्मानित किया।
👉 वैरम खान शिया था। जबकि दिल्ली की अधिकांश जनता सुन्नि था। यही विवाद आगे चलकर युद्ध का रूप लिया और तिलवाड़ा का युद्ध (1560) में अकबर ने वैरम खान को हरा दिया और वैरम खां के आगे दो प्रस्ताव रखा-
1 वैरम खा या तो दूर के किसी सूवा (राज्य) के सुवेदार बन जाए।
2. वैरम खां या तो हज यात्रा पर चले जाएं।
👉 वैरम खान ने हज यात्रा को चुना। हज पर जाते समय गुजरात के मुबारक खां नामक व्यक्ति ने वैरम खां की हत्या कर दी।
👉 वैरम खां का बेटा अब्दुल रहीम था तथा उसकी पत्नी सलीमा बेगम थी। अकबर ने सलीमा बेगम से शादी कर ली।
👉 1560 में अकबर जैसे ही वैरम खां के संरक्षक से मुक्त हुआ तो अपनी धाय माँ माहम अनगा के प्रभाव में आ गया और दो वर्षों तक उसके प्रभाव में रहा। इस दो वर्ष के शासन को पेटीकोट शासन, पर्दा प्रथा का शासन हरम दल का शासन या अतका खेल का शासन कहा गया।
👉 1562 में अकबर हरम दल के प्रभाव से मुक्त हो गया।
👉 अकबर ने 1562 में दास प्रथा का अन्त, 1563 में तीर्थ यात्रा कर का अन्त तथा 1564 में जजिया कर का अन्त कर दिया गया।
👉 1571 ई. में अकबर ने फतेहपुर सिकरी शहर की स्थापना किया। 1575 ई. में अकबर ने इबादत खाना की स्थापना फतेहपुर सिकरी में किया। इस इबादतखाना में सभी धर्मों के लोग बृहस्पतिवार के दिन इकठ्ठा होते थे और अपने अपने धर्म की विशेषता का उल्लेख करते थे। किन्तु बहुत ही जल्द यह इबादतखाना को बन्द करना पड़ा क्योंकि यहां मारपीट शुरु हो जाती थी अकबर के इस निति को सुलह-ए-कुल की निति कहा गया।
👉 1578 में सभी धर्मों के लोगों के इबादत खाना में प्रवेश, अकबर ने अमीर-उल- मोमिनी की उपाधि धारण किया जो केवल खलीफा धारण करते थे।
👉 1579 ई. में अकबर ने मजहर की घोषणा की। इसके तहत धार्मिक मामले में अकबर सर्वोपरि हो गया। मजहर के तहत अकबर ने धार्मिक एकाधिकार प्राप्त कर लिया। धार्मिक विवादों को राजा हल करेगा किन्तु कुरान पर राजा का कोई अधिकार नहीं होगा।
👉 1582 ई. में अकबर ने दिन-ए-इलाही नामक एक नया धर्म चलाया। यह धर्म मानने के लिए कोई बाध्य नहीं था। यह लोगों की इच्छा पर था। दिन-ए-इलाही धर्म को मानने वाला एक मात्र हिन्दू महेशदास (बिरबल) था।
👉 दिन-ए-इलाही धर्म का प्रधान पुरोहित (पंडित) अबूल फजल थे। उनके धार्मिक गुरु अब्दुल लतीफ का था।
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अकबर के धार्मिक जीवन पर सर्वाधिक प्रभाव-
👉 1583 ई. में अकबर ने हिजरी संवत के जगह एक नया Calender इलाही संवत जारी किया।
👉 अकबर के दरबार में हिन्दू धर्म के विद्वान पुरुषोत्तम तथा कुम्भनदास रहते थे।
👉 पारसी धर्म के विद्वान दस्तूर मेहर जी राणा रहते थे। इन्हीं से अकबर ने सूर्य नमस्कार सिखा था।
👉 इसाई धर्म के एकाबीबी रहते थे। अकबर के दरबार में जैन विद्वान हरिविजय सूरी तथा जिनचन्द्र सुर रहते थे। अकबर ने इन्हें गुरु की उपाधि दिया था। अकबर ने चौथे सिख गुरु राम दास को अमृतशहर की स्थापना के लिए 500 बिघा जमीन दान दिया।
👉 अकबर के समकालिन सूफी सन्त शीख सलीम चिश्ती थे। अकबर इनसे सर्वाधिक प्रभावित था इसी कारण अकबर ने अपने बेटे का नाम सलिम रखा। जो आगे जाकर जहांगिर के नाम से जाना गया।
👉 शेख सलिम चिश्ती का मकबरा फतेहपुर सिकरी में है। फतेहपुर सिकरी शहर का वास्तुकार (desinor) वहाउद्दीन थे।
दीन-ए-इलाही धर्म
👉 अकबर ने 1582 ई. में तौहीद-ए-ईलाही (दैवी एकेश्वरवाद) की घोषणा की जो बाद में दीन-ए-इलाही (ईश्वर का धर्म) का नाम से विख्यात हुआ। वास्तविकता यह है कि दीन-ए-इलाही किसी प्रकार का नया धर्म नहीं था। यह वैसे व्यक्तियों का | समूह था जो अकबर के विचारों से सहमत थे और उसे अपना धार्मिक गुरू मानते थे। इस धर्म के लिए किसी धर्मग्रंथ, मंदिर-मस्जिद अथवा विशेष पूजा-स्थल को नियत नहीं किया, बल्कि उसने नए धर्म को एक सैद्धांतिक स्वरूप प्रदान किया। सुलह-कुल की नीति को ध्यान में रखते हुए उसने सभी धर्मों की अच्छी बातों का समावेश अपने धार्मिक दर्शन में किया।
👉 दीन-ए-इलाही वास्तव में सूफी सर्वेश्वरवाद पर आधारित एक विचार पद्धति थी जिसके प्रवर्तन की प्रेरणा मुख्य रूप से निजामुद्दीन औलिया के सुलहकुल या सार्वभौमिक सौहार्द से मिली थी। इस नवीन संप्रदाय का प्रधान पुरोहित अबुल फजल था आइने अकबरी में कुल 18 व्यक्तियों का नाम मिलता है जिन्होंने दीन-ए-इलाही को पूरी तरह से ग्रहण किया था। हिंदुओं में केवल बीरबल ने ही इसे स्वीकार किया था। जबकि राजा भगवान दास व मानसिंह इसके सदस्य बनने से मना कर दिए थे।
👉 दीन-ए-इलाही के सदस्यता का द्वार सभी धर्मों के लोगों के लिए खुला था। शिष्यता ग्रहण करने का दिन रविवार निश्चित किया गया था। इस दिन सदस्यता ग्रहण करने वाले नवागंतुक हाथ में पगड़ी लेकर बादशाह के चरणों में अपना शीश रख देते थे तथा बादशाह उसे उठाकर अपने हाथों से उसकी पगड़ी उसके सिर पर रखता था तथा गुरू के रूप में उसे गुरू मंत्र देता था। इसके सदस्य जब एक दूसरे से मिलते थे तो अल्लाह औ” अकबर (अल्लाह महान है) तथा जल्ले जलालूह 1 (उसके यश में वृद्धि हो) से एक दूसरे का संबोधन करते थे। दीन-ए-इलाही के सदस्यों को चरणों चहारगाना-ए-इलखास को पूरा करना होता था। विन्सेट स्मिथ ने दीन-ए-इलाहीधर्म को मुर्खता का स्मारक कहा था।
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👉 अकबर ने राम-सीता प्रकार के सिक्के चलाए। अकबर ने रुपया तथा दाम सिक्को को भी निरन्तर जारी रखा।
- 1 रुपया (अकबर) = 40 दाम
- 1 रुपया (शेरशाह) = 64 दाम
👉 अकबर के समय वृत्ताकार सिक्का “इलाही” तथा आयता सिक्का “जलाली” कहलाता था।
1 इलाही = 10 रुपया
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जाब्ती प्रणाली – भूमि के माप (आकार) के आधार लगान (Tax) निर्धारण व्यवस्था को जाब्ती प्रणाली कहते हैं
कनकूट प्रणाली :– ऊपज के ध्यान में रखकर लगान (1 निर्धारण व्यवस्था को कनकूट व्यवस्था कहते हैं।
आईन-ए-दहसाला :- दस वर्षों के औसत ऊपज को आधार मानकर लगान (Tax) का निर्धारण आइन-ए-दहसाला कहलाता है। यह लगान निर्धारण की एक औसत प्रणाली है। इसका श्रेय टोडरमल को जाता है।
Note : भू-राजस्व को खराज भी कहते थे यह ऊपजभाग (50%) से 1/3 (33%) तक रहता था।
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अकबर ने भूमि को ऊपज के आधार पर चार श्रेणी में बाँटा था पोजल भूमि – प्रतिवर्ष खेती परती भूमि – एक वर्ष अंतराल पर खेती चाचर भूमि – चार वर्ष अंतराल पर खेती बंजर भूमि – यहाँ खेती नहीं होती थी | अकबर ने लगान वसूली के आधार पर भूमि को चार श्रेणी में बाँटा खालसा भूमि : – यह सरकारी भूमि होती थी। जागी भूमि : – यह मनसबदार को दी गई भूमि थी। पैबाकी भूमि :- यह सरकार के अधीन रहती थी इसके द्वारा जागीदारों के घाटे की पूर्ति की जाती थी। मददमाश भूमि:- यह दान में दी जाती थी। |
अकबर के नवरत्न
बीरबल
नवरत्नों में सबसे बुद्धिमान बीरबल को ही माना जाता था। इनका जन्म 1528 ई. में काल्पी (जालौन) के एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था इनके बचपन का नाम महेशदास था। बीरबल को अकबर के दरबार में पहुंचाने का श्रेय आमेर के राजा भारमल के पुत्र भगवानदास को है। इनकी योग्यता का सम्मान करते हुये सम्राट ने उन्हें कवि राज व राजा की उपाधि के साथ-साथ 2000 का मनसब प्रदान किया। बीरबल एक कुशल सैनिक भी थे। अकबर ने उन्हें नगरकोट, कांगड़ा व कालिंजर में जागीरें भी प्रदान की थीं। 1583ई. में ये अकबर के न्याय विभाग के सर्वोच्च अधिकारी बने। अकबर द्वारा 1582ई. में चलाये गये दीन-ए-इलाही धर्म को स्वीकार करने वाले एकमात्र हिंदू राजा वीरवल ही थे। 1586 ई. में युसुफजई कबीले से लड़ते हुये | इनकी मृत्यु हो गयी। ज्ञातव्य हो कि बीरबल की मृत्यु से अकबर इतने दुखी हुए कि उन्होंने 3 दिन तक अन्न ग्रहण नहीं किये। अकबर ने इन्हें कविराज की संज्ञा दी थी।
अबुल फजल
ये सूफी शेख मुबारक के पुत्र थे जिनका जन्म 1550ई. में आगरा में हुआ था। अपनी योग्यता के कारण ये भी सम्राट के संपर्क में आते ही उनके अभिन्न मित्र हो गये। ये इतिहास, दर्शन एवं साहित्य के विद्वान थे। अकबरनामा व आइने अकबरी जैसे ग्रंथों की रचना करके वे प्रसिद्ध हो गये। अबुल फजल दीन-ए-इलाही धर्म के मुख्य पुरोहित थे। इन्होंने दक्षिण भारत में कई युद्धों का सफल संचालन भी किया। इनकी हत्या 1602ई. में शाहजादा सलीम ने उस समय करा दी जब वे दक्षिण से आगरा की ओर आ रहे थे।
तानसेन
मिजा तानसेन का जन्म ग्वालियर (मध्य प्रदेश) में हुआ था। उनका मूल नाम रामतनु पाण्डेय था। ये वृंदावन के संत हरिदास के शिष्य थे। ये संगीत कला में | अत्यधिक निपुण थे। इनके संगीत की प्रसंशा सुनकर सम्राट अकबर ने इन्हें अपने | दरबार में बुला लिया। तानसेन को संगीत सम्राट भी कहा जाता है। अकबर ने इन्हें कण्ठाभरणवाणी विलास की उपाधि से सम्मानित किया। इन्होंने कई नये रागों की | रचना की थी। इनके समय में ध्रुपद गायन शैली का विकास हुआ। इनकी प्रमुख | कृतियों में मियां की टोड़ी, मियां की मल्हार, मियां की सारंग, दरवारी कान्हड़ा | शामिल हैं। ज्ञातव्य हो कि बाद में तानसेन ने सत्तारी सिलसिले के मुहम्मद गौस की प्रेरणा से इस्लाम धर्म ग्रहण कर लिया। इनकी मृत्यु 1589ई. में हुई।
अब्दुर्रहीम खानेखाना
ये बैरम खां के पुत्र थे। ऐसा माना जाता है कि इनका पालन-पोषण अकबर ने ही किया था। ये उच्चकोटि के विद्वान व कवि थे इन्होंने तुर्की में लिखे बाबरनामा का फारसी में अनुवाद किया था। इनके हिंदी में लिखे होहे आज भी पढ़े जाते हैं। ये | तुलसीदास के समकालीन थे। अकबर का पुत्र जहांगीर भी इनके व्यक्तित्व से | प्रभावित था। गुजरात के शासक को युद्ध में अपनी वीरता से पराजित करने पर अकबर ने इन्हें खानखाना की उपाधि से सम्मानित किया।
मानसिह
ये आमरे के राजा भारमल के पौत्र तथा भगवानदास के पुत्र थे। इन्होंने अकबर के साम्राज्य विस्तार में मुख्य सेनापति की भूमिका निभायी। इनके परिवार से अकबर| का वैवाहिक संबंध स्थापित हुआ जिससे अकबर ने हिंदुओं से उदारता का व्यवहार करते हुये जजिया कर समाप्त कर दिया। महाराणा प्रताप के विरूद्ध अकबर की विजय मानसिंह ने ही दिलायी थी। सम्राट अकार की ओर से इन्होंने काबुल, बंगाल | तथा बिहार प्रदेशों पर सफल सैनिक अभियान चलाये। इनकी मृत्यु 1611ई. में हुयी थी।
टोडरमल
इनका जन्म अवध के जिला सीतापुर के तहसील लहरपुर में हुआ था। अकबर के यहां आने से पूर्व ये शेरशाह सूरी के यहां नौकरी करते थे। ये 1562ई. में अकबर की सेना में भर्ती हुये। 1572ई. में इन्हें गुजरात का दीवान बनाया गया। इनकी प्रसिद्धि का मुख्य कारण इनके द्वारा किये गये भूमि सुधार थे। 9 दीवान-ए-अशरफ के पद पर रहकर इन्होंने भूमि सुधार की सफल योजना चलायी। इनके नाम गा हरदोई जिले में राजा टोडरमल भूलेख प्रशिक्षण संस्थान का नामकरण किया गया है। ये अपने धर्म के कट्टर समर्थक थे इसलिए इन्होंने दीन-ए-इलाही धर्म अस्वीकार कर दिया। राजा टोडरमल ने 1585 ई. में अकबर के द्वारा वित्त पोषण के साथ वाराणसी स्थित काशी विश्वनाथ मंदिर (शिव मंदिर) को पुननिर्माण करवाया था। इनकी मृत्यु 1589 ई. में हुई।
शेख फैजी
इनका जन्म 1547 ई. को आगरा में हुआ था। ये अबुल फजल के बड़े भाई थे। फैजी उच्चकोटि के कवि व लेखक थे। सम्राट अकबर ने इन्हें राजकवि के पद पर आसीन किया था। इन्होंने महाभारत व श्रीमद्भगवत गीता का फारसी अनुवाद किया व अकबरन नामक ग्रंथ की भी रचना इन्होंने की थी। ये दीन-ए-इलाही धर्म के कट्टर समर्थक थे। गणित की प्रसिद्ध पुस्तक लीलावती का फारसों में अनुवाद किया। इनकी मृत्यु 1595 ई. में हुई थी।
हकीम हुकाम
ये अकबर के विश्वासपात्र मित्र थे। अकबर के रसोईघर का प्रबंध करना इनको । जिम्मेदारी थी। कही-कही पर फकीर अजिमोद्दीन को भी नवरत्न बताया गया है।
मुल्ला – दो – प्याजा
ये अरब के रहने वाले थे और इन्हें भोजन में दो प्याज बहुत पसंद थे इसलिये। | अकबर ने इनका नाम मुल्ला-दो प्याजा रख दिया। अपनी बुद्धिमानी व वाक्पटुता | के कारण ये नवरा में शामिल किये गये।
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👉 अकबर ने सर्वप्रथम 1559 में ग्वालियर अभियान किया। 1560 में अकबर ने जौनपुर अभियान किया।
👉 1561 में चुनार तथा मालवा अभियान किया तथा इसे जीतकर मुगल साम्राज्य में मिला लिया।
👉 1562 में आमेर पर आक्रमण किया। आमेर की राजधानी जयपुर थी और आमेर के राजा भारमल (कछवाहा राजपूत) थे।
👉 राजा भारमल एक मात्र राजपुत राजा थे जिन्होंने अकबर की अधिनता स्वेच्छा से स्वीकार किया और अपनी बेटी जोधाबाई (हरखा बाई) का विवाह अकबर से कर दिया। वे अपने बेटे भगवान दास तथा पोता मान सिंह को अकबर की सेवा में भेजा। अकबर ने जोधाबाई को मरीयम उज्ज जमानि की उपाधि दिया।
👉 गोंडवाना (MP) की रानी दुर्गावती (संग्राम सिंह की विधवा) ने कभी भी अकबर की अधनता स्वीकार नहीं किया। यह एक मात्र महिला थी जिसने अकबर का सर्वाधिक विरोध किया। 1564 ई. में आसफ खां ने रानी दुर्गावती को पराजित कर दिया। अंतत: गोंडवाना (MP) पर अकबर का अधिकार हो गया।
👉 1567 में अकबर ने मेवाड़ अभियान किया। इस समय मेवाड की राजधानी चित्तौड़ थी और वहां के राजा उदय सिंह थे। (मेवाड) चित्तौड़ अभियान पूरा होने से पहले ही अकबर लौट गया। पुनः अकबर ने 1576 ई. में मेवाड अभियान किया और हल्दीघाटी के युद्ध में उदय सिंह के पुत्र महाराणा प्रताप को पराजित कर दिया। अकबर की सेनापति मानसिंह थे जबकि महाराणा प्रताप का सेनापति हकीम खान शूर थे। प्रारम्भ में युद्ध महाराणा प्रताप जीत रहे थे किन्तु यह अपवाह फैलाया गया कि अकबर भी युद्ध में शामिल हो गया। जिससे मुगल सेना का मनोबल बढ़ गया। किन्तु महाराणा प्रताप जंगल में भाग गए इस प्रकार मेवाड़ अभियान अधूरा रह गया। धीरे-धीरे राणा प्रताप ने पुनः अधिकांश क्षेत्र पर अधिकार कर लिया।
👉 1572 में अकबर ने गुजरात अभियान किया इसी समय अकबर ने पहली बार समुद्र को देखा था। (खम्भात की खाड़ी) यहीं पर अकबर पुर्तगालियों से भी मिला था।
👉 अकबर ने जब गुजरात को हराकर वापस लौटा तो गुजरात के शासकों ने अकबर की अधिनता मानने से अस्वीकार कर दिया। इसी कारण अकबर ने पुनः 1573 ई. में गुजरात अभियान किया। यह अकबर का सबसे द्रुतगामी अभियान था। (9 दिन) इसी गुजरात विजय के उपलक्ष्य में अकबर ने फतेहपुर सिकरी में बुलन्द दरवाजा का निर्माण कराया।
👉 अकबर ने बंगाल तथा बिहार को मुगल साम्राज्य में 1576 में मिला लिया।
👉 अकबर ने 1581 में कबूल अभियान, 1586 में कश्मीर अभियान किया और इसे जीत लिया।
👉 कश्मीर के यूसूफजाई कबीले के विद्रोह में ही बीरबल की मृत्यु हो गयी।
👉 1595 में कंधार, बलुचिस्तान भी जीत लिया।
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👉 अकबर ने दक्षिण भारत विजय के लिए अब्दुल रहीम और उसके पुत्र मुराद के नेतृत्व में सेना भेजा। अकबर दक्षिण भारत अभियान करने वाला पहला मुगल शासक था
दक्षिण भारत के 4 प्रमुख राज्य थे।
- खानदेश .
- अहमदनगर
- बीजापुर
- गोलकुण्डा
👉 खान देश को दक्षिण भारत का प्रवेश द्वार कहते थे। खानदेश ने स्वतः अकबर की अधिनता स्वीकार कर लिया।
👉 अकबर ने अहमदनगर की शासिका चांद बीबी से युद्ध करके उससे बरार तथा अमदनगर का क्षेत्र जीत लिया। बीजापुर के शासक ने भी अकबर की अधीनता स्वीकार कर लिया।
👉 1601 में खान देश ने विद्रोह कर दिया जिसे असीरगढ़ के युद्ध में अकबर ने विद्रोह समाप्त कर दिया। यह युद्ध अकबर ने रिश्वत देकर जीता था। असीरगढ़ का युद्ध अकबर के जीवन का अंतिम युद्ध था।
👉 इस प्रकार असीरगढ़, बीजापुर, अहमदनगर, खानदेश तथा बरार पर मुगलों का अधिकार हो गया।
👉 1602 ई. में जहांगीर ने अपने पिता के विरुद्ध इलाहाबाद में विद्रोह कर दिया। इस विद्रोह को दबाने के लिए अकबर अबुल फजल को भेजा। किन्तु जहांगीर के कहने पर वीर सिंह बुन्देला ने इनकी हत्या कर दी।
👉 1605 ई. में डायरिया के कारण अकबर की मृत्यु हो गयी। Remark — अकबर के गुरु अब्दुल लतीफ थे जो एक योग्य व्यक्ति थे किन्तु अकबर निरक्षर ही रह गया।
👉 फिरोज शाह तुगलक (F.S.T.) को सल्तनत काल का अकबर कहा जाता है।
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अकबर द्वारा निर्मित किले
आगरा का किला 1565 ई.
लाहौर का किला 1565 ई.
अजमेर का किला. 1573 ई.
अटक का किला 1581 ई.
इलाहाबाद का किला 1583 ई.
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आपका ब्लॉग पढ़ कर हमें अच्छा लगा।
अच्छी जानकारी के लिए धन्यवाद।
आपका बहुत बहुत आभार