Babur notes in hindi / बाबर के लड़े गए प्रमुख युद्ध
Babur notes in hindi / बाबर के लड़े गए प्रमुख युद्ध दोस्तों स्वागत है आपका हमारे इतिहास के नोट्स सीरिज मैं आज हम आपको मुग़ल वंश के महत्वपूर्ण शासक बाबर(Babur) के बारे मैं जानकारी देंगे और बाबर के द्वारा किये गए प्रमुख युद्ध के बारे मैं विस्तार से चर्चा करेंगे जो आपके आने वाले किस भी एग्जाम के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे
मुगल वंश का संस्थापक | बाबर(Babur ) |
बाबर (Babur ) का वास्तविक नाम | जहीरुद्दीन मुहम्मद’ |
तुर्की भाषा में बाबर का अर्थ | बाघ |
बाबर का जन्म | 14 फरवरी, 1483 को फरगना (उजवेकिस्तान ) |
बाबर के पिता | उमर शेख मिर्जा (तैमूर वंशज) |
माता | कुतुलुबनिगार खान (मंगोल वंशज) जो चंगेज खां की वंशज थी |
⏩ तैमुर के मृत्यु के बाद मध्य एशिया में अनेक छोटे-छोटे राज्यों का उदय हुआ। उन्हीं राज्यवंशों में से एक मुगल था ।
बाबर द्वारा चलाए गए सिक्के
सिक्के — बाबर ने काबुल में चांदी का ‘शाहरुख‘ तथा कन्धार में ‘बाबरी’ नामक सिक्का चलाया। उसके चांदी के सिक्को पर एक तरफ कलमा और चारों खलीफाओं का नाम तथा दूसरी ओर बाबर का नाम व उपाधि अंकित थी।
⏩ बाबर (Babur ) अपनी दादी एहसान दौलतवेग के सहयोग से 11 वर्ष की आयु में 1494 ई. में फरगना का शासक बना और मिर्जा की उपाधि धारण किया।
⏩बाबर (Babur ) ने 1501 में समरकंद जीत लिया किन्तु यह जीत केवल आठ महिने ही रही। बाबर ने काबुल और गजनी पर अधिकार कर लिया।
⏩ 1507 ई. में इसने मिर्जा की उपाधि त्याग किया और पादशाह (बादशाह) की उपाधि धारण किया।
⏩ बाबर ने जिस नए वंश की स्थापना किया उसका नाम चगताई तुर्क था बाबर को भारत की ओर आक्रमण करने के लिए इसलिए मजबूर होना पड़ा कि उसके पड़ोस के शासक उससे हमेशा युद्ध करते रहते थे।
⏩ बाबर(BABAR) पानीपत के प्रथम युद्ध से पहले भारत पर 4 बार आक्रमण किया। पानीपत का प्रथम युद्ध उसका भारत पर 5वां आक्रमण था। 1519 ई. में बाबर ने पहला बाजौर अभियान किया था। उसी आक्रमण में ही उसने भेड़ा के किला को जीत लिया। बाबर ने इस किले को जीतने के लिए सर्वप्रथम बारुद और तोप का प्रयोग किया।
⏩ पानीपत के प्रथम युद्ध के लिए बाबर को निमंत्रण पंजाब का सूवेदार दौलत खां लोदी, इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खां लोदी तथा राणासांगा ने दिया।
Babur notes in hindi
बाबर (Babur ) द्वारा लड़े गए प्रमुख युद्ध
पानीपत का प्रथम युद्ध | 21 अप्रैल, 1526 | इब्राहिम लोदी और बाबर के बीच | बाबर की जीत हुई |
खानवा का युद्ध | 17 मार्च 1527 | राणा सांगा और बाबर के बीच | बाबर की जीत हुई |
चंदेरी का युद्ध | 29 जनवरी 1528 | मेदनी राय और बाबर के बीच | बाबर की जीत हुई |
घाघरा का युद्ध | 6 मई 1529 | अफगानो और बाबर के बीच | बाबर की जीत हुई |
बाबर (Babur ) notes in hindi
पानीपत का प्रथम युद्ध 21 अप्रैल, 1526
पानीपत का प्रथम युद्ध बाबर व इब्राहिम लोदी के मध्य 21 अप्रैल, 1526 ई० को हुआ। इब्राहिम लोदी के पास एक विशाल सेना थी किन्तु उसकी सेना परंपरागत तरीके से विभाजित थी। वहीं दूसरी तरफ बाबर ने युद्ध से पूर्व स्थिति का पूरा जायजा लिया। उसने खाइयां खोदकर और पेड़ों की बाड़ खड़ी कर अपनी सुरक्षा की व्यवस्था की। अपनी सेना को उसने दाहिना, मध्यम, बायां, अग्रिम और सुरक्षित पंक्तियों में विभाजित किया।
इसी युद्ध में उसने उजबेगों की युद्ध नीति तुलुगमा पद्धति तथा तोपों को सजाने की उस्मानी पद्धति का प्रयोग किया। दो गाड़ियों के बीच व्यवस्थित जगह छोड़कर उसमें तापों को रखकर चलाने की पद्धति उस्मानी पद्धति कहा जाता था। इस विधि को उस्मानी पद्धति इसलिए कहा गया क्योंकि इसका प्रयोग उस्मानियों ने सफवी शासक शाह इस्माइल के विरुद्ध किया था। बाबर की सहायता के लिए हुमायूं, उसके योग्य सरदार व दो कुशल तोपची उस्ताद अली व मुस्तफा मैदान में थे।
इब्राहिम लोदी के चाचा आलम खां लोदी ने भी युद्धस्थल में बाबर की सहायता की थी। तोपों का संचालन उस्ताद अली कुली तथा बन्दूकचियों का संचालन मुस्तफा ने किया। तोपखाने की सहायता के लिए एक अग्रिम सुरक्षा पंक्ति थी जिसमें खुसरो कुकुलदश और मुहम्मद अली जंग की कमान में सर्वाधिक कुशल गतिशील घोड़सवार सेना थी। हुमायूँ और ख्वाजा कलां की कमान में सेना का दायां पक्ष था। जबकि सेना का बायां पक्ष मुहम्मद सुल्तान मिर्जा और मेहदी ख्वाजा के कमान में था। दोनों सेनाएं आमने-सामने थी।
इब्राहिमलोदी पहल करने का इच्छुक नहीं था यद्यपि बाबर ने अपने चार-पांच हजार सिपाही भेजकर उसपर अप्रत्याशित हमला भी करवाया किन्तु वह सफल नहीं हुआ। अन्ततः 20 अप्रैल, 1526 ई० को सुल्तान इब्राहिमलोदी की सेना युद्ध के लिए आगे बढ़ी। बाबर ने उसकी भूल का पूरा-पूरा लाभ उठाया। इब्राहिम लोदी की सेना को घेर लिया गया और उस पर वाणों की वर्षा होने लगी।
उस्ताद अली कुली तथा मुस्तफा ने तोपों से शत्रुओं पर प्रहार करना आरम्भ कर दिया। अतः सुल्तान इब्राहिम लोदी की सैन्य व्यवस्था अस्त-व्यस्त हो गई। अन्त में इब्राहिमलोदी पराजित हुआ और युद्ध स्थल में मारा गया। वह मध्यकाल का प्रथम शासक था जो युद्धस्थल में मारा गया।
इब्राहिमलोदी के साथ उसका मित्र ग्वालियर के राजा विक्रमजीत भी युद्धस्थल में मारा गया। इस प्रकार पानीपत के युद्ध के साथ ही प्रथम अफगान साम्राज्य का भी अन्त हो गया। 27 अप्रैल, 1526 ई को बाबर ने अपने आपको पादशाह घोषित कर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की। दिल्ली में उसके नाम का खुत्वा पढ़ा गया।
इस प्रकार अफगानों की नई और पुरानी (आगरा-दिल्ली) दोनों ही राजधानियां बाबर के अधीन हो गयी। इसके साथ ही लोदियों के सम्पूर्ण राज्य पर भी उसकी सत्ता स्थापित हो गयी। हुमायूँ को आगरा में एकत्र लोदी खजाना भी मिल गया। इस धन से बाबर की आर्थिक कठिनाइयां भी दूर हो गयी।
पानीपत के प्रथम युद्ध में पहली बार बाबर ने तोपखाने व तुलूगमा पद्धति का सफलतापूर्वक प्रयोग किया। इस नवीन युद्ध पद्धति ने भारत में युद्ध का स्वरूप ही बदल दिया।
पानीपत के युद्ध के पश्चात्-
पानीपत के युद्ध में विजय के पश्चात् भी बाबर की स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। सर्वप्रथम उसने अपने पुत्र हुमायूँ को एक सैन्य टुकड़ी के साथ आगरा के लिए प्रस्थान का आदेश दिया। मेंहदी और उसके दल को दिल्ली जाने तथा वहां के खजाने की रक्षा का आदेश दिया। तत्पश्चात् वह् पानीपत से दिल्ला के लिए प्रस्थान किया।
दिल्ली पहुंचकर उसने तुगलकाबाद अपना शिविर स्थापित किया। उसने वली किजील को शिकदार तथा दोस्तवेग को में दिल्ली का दीवान नियुक्त किया। तत्पश्चात् आगरा के लिए प्रस्थान किया। आगरा पहुचने पर हुमायूँ बाबर की सेवा में उपस्थित हुआ। खजाने के साथ उसने बाबर को प्रसिद्ध कोहिनूर हीरा भी भेंट किया। हुमायूँ ने यह हीरा ग्वालियर के दिवंगत राजा विक्रमाजीत के परिवार से प्राप्त किया था जिसका वजन 320 रत्ती था।
हुमायूँ के कार्यों से प्रसन्न होकर बाबर ने उसे ईनाम के तौर पर सत्तर लाख दाम सहित वह हीरा हुमायूँ को लौटा दिया। अन्य अधिकारियों को पुरस्कार स्वरूप धनराशि एवं जागीरें प्रदान की। बाबर द्वारा इतनी उदारतापूर्वक धनराशि के वितरण के कारण ही लोगों ने उसे कलंदर कहना आरम्भ किया।
बाबर ने इब्राहिम लोदी के परिवारों व उसके अधिकारियों के परिवारों को पूरा संरक्षण प्रदान किया। किन्तु इब्राहिमकी माता ने षड्यन्त्र कर रसोइयों व नौकरानियों से सांठ-गांठ कर बाबर के खाने में जहर मिला दिया किन्तु भाग्यवश बाबर बच गया। षड्यंत्र में शामिल अपराधियों को मृत्युदण्ड दिया गया तथा इब्राहिमलोदी की मां को बंदीगृह में डाल दिया गया।
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पानीपत के युद्ध के पश्चात प्रमुख समस्याएं-
पानीपत के युद्ध के पश्चात भारत में बाबर की स्थिति अभी सुरक्षित नहीं हुई थी। मुक्त हाथों से अपने अमीरों व सैनिकों में खजाना वितरित कर उन्हें अपना समर्थक अवश्य बना लिया था, परन्तु जनता अभी भी मुगलों की सत्ता स्वीकारने को तैयार नहीं थी। जगह-जगह विद्रोह हो रहे थे।
कासिम खां सम्भाली ने सम्भल, निजाम खां ने बयाना, हसन खां मेवाती ने मेवात, महमूद जैतून ने धौलपुर तातर खां सांरगखानी ने ग्वालियर हसन खां नोहानी ने रापरी, कुतुब खां ने इटावा, आलम खां ने कन्नौज, नसीर खां नोहानी और मारुफ फारमूली ने बिहार तथा इसी प्रकार अन्य अफगान सरदारों ने अपनी-अपनी स्वतंत्रता की घोषणा कर दी। अफगानों ने दरिया खां नोहानी के पुत्र बहार खां को सुल्तान घोषित किया जिसने सुल्तान महमूद की पदवी धारण कर बिहार का शासक बन बैठा।
अफगानों के अतिरिक्त बाबर को राजपूतो से भी खतरा था। मेवाड़ के राणा सांगा और चंदेरी के मेदनी राय के नेतृत्व में राजपूत संगठित होकर मुगलों को मार भगाने एवं हिन्दू राज्य की स्थापना के लिए प्रयत्नशील थे। राणा सांगा ने अपना प्रभाव आगरा के निकट पीलियाखार नदी तक बढ़ा लिया था। इसके अतिरिक्त बाबर के अपने सैनिक भी ग्रीष्म काल में भारत में रुकना नहीं चाहते थे। अतः वहकाबुल लौटना चाहते थे। इस प्रकार बाबर के समक्ष यह एक जटिल समस्या थी किन्तु उसने इन समस्याओं को हल करने का प्रयास किया।
सर्वप्रथम उसने अपने अमीरों व सैनिकों को अपने पक्ष में करने का निश्चय किया। एक प्रभावकारी वक्ता के रूप में अपने भाषण से बाबर ने सैनिकों में एक नवीन साहस एवं उत्साह उत्पन्न कर दिया। सैनिकों के समक्ष उसने काबुल की दरिद्रता व भारत के उज्जवल भविष्य का खाका खींचा। बाबर के इस वक्तव्य से उसके सभी अमीर व सैनिक संतुष्ट हो गए तथा भारत में रहने का निश्चय किए। केवल दो अमीर ख्वाजा कला तथा मीर मीरान भारत में रहने के पक्ष में नहीं थे, अतः उन्हें स्वदेश लौटने की अनुमति दे दी गई।
तत्पश्चात् बाबर ने अफगानों से मैत्री एवं युद्ध करने की नीति अपनायी। उसने उन सभी अफगान सरदारों को अपनी सेवा में ले लिया, जिन्होंने स्वेच्छा से आत्मसमर्पण किया। इससे प्रभावित होकर कोल (अलीगढ़) का अफगान सरदार शेख घूरनन, अली खां मेवाती फिरोज खां, शेख बायजीद, महमूद खां नोहानी, जिया आदि अफगान सरदारों ने भी बाबर की अधीनता स्वीकार कर ली। किन्तु कुछ अफगान सरदार बाबर की अधीनता स्वीकार करने के पक्ष में नहीं थे।
अतः बाबर ने उनके विरुद्ध युद्ध करने का निश्चय किया। शीघ्र ही इटावा, कन्नौज धौलपुर, रापड़ी, जौनपुर, गाजीपुर, तथा कालपी पर मुगलों ने अधिकार कर अफगानों को मार भगाया। इस पूरे क्षेत्र को जुन्नैद बरलास को सौंप दिया गया।
बाबर के इस कार्य से क्षुब्ध होकर अनेक अफगान सरदार राणा सांगा से जा मिले तथा बाबर के विरुद्ध योजना बनाने लगे। अब बाबर के दो शत्रु शेष बचे थे- मेवाड़ का राणा सांगा व बिहार तथा बंगाल के अफगान। बाबर ने पहले राजपूतों की शक्ति को कुचलने का निश्चय किया।
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खानवा का युद्ध 17 मार्च 1527
पानीपत के युद्ध के पश्चात बाबर द्वारा भारत में लड़े गये युद्धों में सबसे महत्वपूर्ण खानवा का युद्ध था। पानीपत के युद्ध ने बाबर को जहाँ दिल्ली का बादशाह बनाया वही खानवा का युद्ध ने उसके विजयों को स्थायित्व प्रदान किया।
खानवा के युद्ध का मुख्य कारण
खानवा के युद्ध का मुख्य कारण बाबर का भारत में रहने का निश्चय था । राणा सांगा समझता था कि मध्य एशियाई लूटेरों की भांति बाबर भी दिल्ली को लूटकर तथा लोदी सत्ता को शक्तिहीन कर काबुल लौट जाएगा। इसी लिए उसने बाबर को भारत पर आक्रमण करने व इब्राहिम लोदी के विरुद्ध सहायता देने का वचन दिया था। किन्तु जब बाबर ने भारत में रहने का निश्चय किया तब राणा सांगा उसका विरोधी हो गया। इसके अतिरिक्त जब पानीपत के युद्ध के पश्चात् बाबर ने अफगानों को कुचलने का निर्णय किया तो वे भाग कर राणा सांगा के दरबार में शरण लिए। इसमें हसन खां मेवाती, महमूद लोदी व आलम खां लोदी प्रमुख थे। इन्होंने राणा सांगा को बाबर से युद्ध करने के लिए उत्तेजित किया।
खानवा के युद्ध से पूर्व
खानवा के युद्ध से पूर्व राणा सांगा ने अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के उद्देश्य से एक विशाल सेना के साथ बयाना पर अधिकार करने के लिए प्रस्थान किया। उस समय बयाना का शासक निजाम खां था जो भयभीत होकर बाबर के पास शरण लिया तथा उसकी अधीनता स्वीकार कर उसे दुर्ग समर्पित कर दिया। बाबर ने निजाम खां को अपनी सेवा में ले लिया और उसके स्थान पर मेंहदी ख्वाजा को बयाना में नियुक्त किया। किन्तु राणा सांगा ने इसे पराजित कर बयाना पर अधिकार कर लिया। इस प्रारम्भिक विफलता तथा काबुल के एक ज्योतिषी मुहम्मद शरीफ की यह भविष्यवाणी की उस युद्ध में बाबर विजयी नहीं होगा, बाबर के सैनिक हतोत्साहित हो रहे थे। किन्तु बाबर का साहस एवं धैर्य भंग नहीं हुआ। सैनिकों का मनोबल ऊँचा करने के लिए उसने काफिरों के विरुद्ध जेहाद (युद्ध) की घोषणा की। सफलता के लिए ईश्वर से प्रार्थना की तथा नाटकीय ढंग से सभी के सम्मुख कभी शराब न पीने की शपथ ली। शराब के प्याले व वर्तनों को तुड़वा दिया और गजनी से आयी हुई शराब में नमक डलवा दिया। इसके अतिरिक्त अपने राज्य क्षेत्र के सभी मुस्लिम प्रजा को ‘तमगा’ अथवा व्यापारिक कर से मुक्त कर दिया। उसके इन कार्यों का सैनिकों पर उचित एवं अपेक्षित प्रभाव पड़ा। अतः बावर के सभी सैनिकों ने कुरान पर हाथ रखकर अन्तिम सांस तक युद्ध करने का निश्चय किया।
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युद्ध- खानवा का युद्ध 16 मार्च, 1527 ई० को सीकरी से 10 मील दूर खानवा नामक स्थान पर बाबर व राणा सांगा के मध्य हुआ था। इस युद्ध में हसन खां मेवाती, महमूद लोदी, तथा आलम खां लोदी ने राणा सांगा का साथ दिये। दोनों तरफ से सेनाएं तैयार थी। बाबर ने इस युद्ध में भी पानीपत के युद्ध पद्धति का ही अनुसरण किया। सेना के मध्य भाग का नेतृत्व स्वंय संभाला। हुमायूँ को दायें तथा मेहदी ख्वाजा को बायें भाग का नेतृत्व प्रदान किया। तुलुगमा पद्धति के लिए मलिक कासिम व मुनीम अल्का को नियुक्त किया तोपखाना उस्ताद अली कुली व मुस्तफा के अधीन था। उधर राणा सांगा ने 15 मार्च, 1527 ई० को बसावर से खानया के लिए प्रस्थान किया। वानवा पहुंच कर उसने भी अपने सैनिकों को दायें, बाएं ये मध्य भाग में विभाजित किया। इस युद्ध में सैनिकों के विषय में विद्वानों में मतभेद है। उशक्षक विलियम के अनार बाबर और राणा सांगा के सेनाओं का अनुपात 1:8. था जबकि ए०एल० श्रीवास्तव के अनुसार यह अनुपात 1:2 था जो अधिक तर्क संगत है। 16 मार्च, 1527 ई० को युद्ध आरम्भ हुआ। यद्यपि राजपूत सेना बड़ी वीरता से लड़े किन्तु पराजित हुए। अनेक राजपूत सरदार इस युद्ध में मारे गए। राणा सांगा युद्ध में बुरी तरह घायल हो गया। उसे अचेतावस्था में उसके सैनिकों द्वारा युद्धस्थल से हटा दिया गया। बाबर विजयी हुआ। अगले दिन उसने राजपूतों के मुण्डों का ढेर लगवाया तथा गाजी अर्थात काफिरों के विरुद्ध युद्ध में विजयी का खिताब धारण कर अपने विजय की घोषणा की। अपने मृतक शत्रुओं के मुण्डों के ढेर लगावा कर खुशी मनाना मंगोलों की एक परम्परा थी।
परिणाम- खानवा के युद्ध में विजय, बाबर के जीवन में एक नए अध्याय का आरम्भ था अब उसका घुमक्कड़ और अस्थिर जीवन समाप्त हो गया। पानीपत के युद्ध ने बाबर को भारत में पाँव रखने का अवसर प्रदान किया वहीं खानवा के युद्ध ने उसे भारत में स्थिरता प्रदान की। उसकी स्थिति सुदृढ हो गयी साथ ही साथ उसके राज्य के खोने का भय भी समाप्त हो गया। खानवा के युद्ध में पराजय के साथ-साथ राजपूत- अफगानों का संयुक्त राष्ट्रीय मोर्चा भी समाप्त हो गया। राजपूतों के हिन्दू राज्य स्थापित करने तथा अफगानों के पुनः दिल्ली की गद्दी प्राप्त करने का स्वप्न सदा के लिए टूट गया। खानवा के युद्ध का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह भी हुआ कि बाबर की शक्ति का केन्द्र काबुल के स्थान पर दिल्ली हो गया। इसके अतिरिक्त उसने मेवात पर आक्रमण कर उसे अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। अपनी स्थिति सुदृढ़ करने के बाद बाबर ने अपने सैनिकों व अमीरों को स्वदेश (काबुल) लौटने की अनुमति प्रदान कर दी तथा हुमायूँ को बदख्शाँ का प्रशासन सम्भालने का आदेश दिया।
बाबर (Babur ) notes in hindi
चंदेरी का युद्ध 29 जनवरी, 1528
- ⏩ खानवा के युद्ध के पश्चात् बाबर ने चंदेरी की ओर अपना ध्यान दिया । चन्देरी सामरिक दृष्टिकोण से बाबर के लिए महत्वपूर्ण था। वह मालवा और बुन्देलखण्ड की सीमा पर था तथा मालवा और उत्तर-भारत की मुख्य सड़क वहां से गुजरती थी। चन्देरी को जीतने के बाद न केवल राजपूत शक्ति दुर्बल होती बल्कि बाबर मालवा पर आसानी से नियंत्रण स्थापित कर सकता था। बाबर के आक्रमण के समय चन्देरी का शासक मेदिनी राय था । वह एक शक्तिशाली राजपूत शासक था।
- बाबर इसे स्वतंत्र छोड़ना उपयुक्त नहीं समझा इसलिए उसने चन्देरी पर आक्रमण करने का निश्चय किरण। अलवर, चंदावर, रापड़ी, इटावा पर अधिकार के बाद बाबर चन्देरी की ओर बढ़ा। सर्वप्रथम उसने शमसाबाद के बदले मेदिनीराय से चन्देरी मांगा। किन्तु मेदिनी राय ने प्रस्ताव को ठुकरा दिया। अन्त में बाबर ने 29 जनवरी, 1528 ई० को दुर्ग घेर लिया।
- मुगलों को शक्तिशाली देखकर राजपूत स्त्रियों ने जौहर कर लिया तथा राजपूतों ने वीरतापूर्वक बाबर का सामना किया। किन्तु अन्त में पराजित हुए। मेदिनीराय युद्ध में मारा गया। चन्देरी पर मुगलों का अधिकार हो गया। चन्देरी का दुर्ग मालवा के शासकों के वंशज अहमदशाह को सौंपा गया। तथा मुल्ला अपाक को चन्देरी का शिकदार नियुक्त किया गया। मेदनी राय की दो पुत्रियां – एक हुमायूँ को तथा दूसरी कामरान को प्रदान की गई।
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घाघरा का युद्ध 6 मई 1529
- घाघरा का युद्ध अफगानों व बाबर के मध्य हुआ था। यह बाबर का अन्तिम युद्ध था। पानीपत के प्रथम युद्ध में पराजित होने के बाद भी अफगान पूरी तरह निर्बल नहीं हुए थे। वे अभी भी बाबर की सत्ता को पूरी तरह से स्वीकार नहीं कर रहे थे। खानवा के युद्ध में बाबर की विजय के बाद महमूद लोदी ने बिहार में जाकर शरण ली। कुछ समय बाद उसने एक विशाल सेना के साथ चुनार के निकट आ पहुंचा तथा चुनार के दुर्ग का घेरा डाल दिया किन्तु जब उसे बाबर के आगमन की सूचना मिली तो उसने घेरा उठा लिया और पीछे हट गया।
- राजपूतों की शक्ति को नष्ट करने के बाद अब केवल अफगान ही शेष बचे थे जो बावर की सत्ता को चुनौती दे रहे थे। अतः बाबर ने अफगानों को पराजित करने के बाद उनकी शक्ति को नष्ट करने का निश्चय किया। यद्यपि बंगाल का शासक नुसरतशाह जो बावर का समकालीन था, अफगानों की सहायता कर रहा था जबकि बाबर से उसके सम्बन्ध अच्छे थे। इस सम्बन्ध में बाबर ने नुसरतशाह को संदेश भी भेजा कि वह अफगानों की सहायता न करे, किन्तु नुसरत शाह ने बाबर के संदेश का कोई उत्तर नहीं दिया। अतः बाबर को यह विश्वास हो गया कि सुल्तान नुसरत शाह अफगानों की सहायता कर रहा है।
- अब बाबर ने गंगा नदी पार कर आगे बढ़ने तथा अफगान एवं बंगाल की संयुक्त सेनाओं को पराजित करने का निश्चय किया। उसने गंगा नदी पार कर घाघरा नदी के तट पर 5 मई, 1529 ई० को अफगानों को पराजित किया। मध्ययुगीन इतिहास में घाघरा का युद्ध पहला युद्ध था जो जल एवं थल दोनों पर लड़ा गया ।
- परिणाम- घाघरा के युद्ध में पराजित होने के बाद अफगानों की शक्ति पूरी तरह से नष्ट हो गयी। महमूद खां लोहानी, जलाल खां, शेर खां सूर तथ फरदी खां जैसे अफगान सरदारों ने आत्मसमर्पण कर बाबर की अधीनता स्वीकार कर ली। लोहानी अफगानों के इस व्यवहार से प्रसन्न होकर बाबर ने उन्हें बिहार वापस कर दिया। उधर बंगाल के शासक र त शाह ने भी बाबर से संधि करना उचित समझा। अतः प्रकार बावर तथा नुसरत शाह में एक संधि हुई जिसके अनुसार दोनों ने एक दूसरे के राजसत्ता का आदर करने तथा एक दूसरे के शत्रुओं को शरण न देने का वचन दिए ।
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बाबर के अन्तिम दिन व मृत्यु
- घाघरा के युद्ध में विजय के बाद भारत में बाबर की शक्ति स्थापित हो गयी। उसका साम्राज्य सिन्धु नदी से लेकर बिहार और हिमालय से लेकर ग्वालियर तथा चन्देरी तक विस्तृत हो गया किन्तु बिहार से लौटते समय उसे ज्ञात हुआ कि हुमायूँ उजबेगों से समरकन्द और फरगना लेने में असमर्थ है। इसलिए उसने हुमायूँ के स्थान पर हिन्दाल को बदख्शा प्रदान किया । किन्तु जब सईद खां द्वारा बदख्शाँ पर आक्रमण की सूचना मिली तो बाबर ने मीर अली को सहायता के लिए भेजना चाहा किन्तु उसने जाने से इंकार कर दिया।
- तत्पश्चात् बाबर ने हुमायूँ को पुनः बदख्शा जाने को कहा, किन्तु उसने भी इंकार कर दिया। अतः बाबर ने हुमायूँ को सम्भल की जागीर देकर वहां भेज दिया। सम्भल पहुंचकर हुमायूँ बीमार हो गया, उसे आगरा लाया गया। उचित चिकित्सा के बाद भी उसके स्वास्थ्य में कोई सुधार नहीं । एक कथा के अनुसार अन्त में बाबर ने ईश्वर से अपनी जिन्दगी के बदले में 10 हुआ। हुमायूँ की जिन्दगी मांगी, ईश्वर ने उसकी प्रार्थना सुन ली।
- कुछ समय पश्चात् हमायूं के स्वास्थ्य में सुधार होने लगा तथा बाबर बीमार हो गया। अपनी मृत्यु शैय्या पर उसने हुमायूँ को अपना उत्तराधिकारी नियुक्त किया। अन्त में 26 दिसम्बर, 1530 ई० को उसकी मृत्यु हो गयी। किन्तु आधुनिक इतिहासकारों ने बाबर की मृत्यु की उपर्युक्त घटना का खण्डन किया है। डॉ० आर०एस० शर्मा के अनुसार बाबर की मृत्यु स्वयं की बीमारी से हुई थी।
- डॉ० आर०पी० त्रिपाठी ने बाबर के मृत्यु के कारण उसके व्यस्त जीवन, भारत की गर्म जलवायु को माना जबकि बाबर की पुत्री गुलबदन बेगम ने अपनी पुस्तक हुमायूँ नामा में एक षड्यंत्र द्वारा इब्राहिम लोदी की मां द्वारा उसे विष देने को माना ।
- मृत्यु के बाद बाबर को आगरा के चार बाग (आरामबाग) में दफनाया गया किन्तु बाद में शेरशाह के शासनकाल में उसकी अस्थियों को उसकी विधवा पत्नी मुवारक युसुफजई काबुल ले गई जहाँ उसे एक उद्यान में दफना दिया गया।
बाबर द्वारा किये गए निर्माण कार्य
⏩✪ बाबर चार बाग शैली में आगरा में आरामबाग नामक बगीचा बनवाया था। इसमें नदी तथा नहरी द्वारा पानी देने की व्यवस्था थी। बाबर ने मुबइयान नामक एक पद्य शैली का विकास किया।
⏩ ✪ बाबर को चार बाग शैली का जनक कहा जाता है।
⏩ ✪ बाबर ने अयोध्या में बाबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था। इस मस्जिद का वस्तुकार (desioner) मीर वाकि था । बाबर ने अपनी आत्मकथा तुजुक ए बाबरी (तुर्की भाषा) में यह कहता है कि उसने जिस वक्त भारत पर आक्रमण किया उस वक्त भारत में 5 मुस्लिम राज्य तथा 2 हिन्दू राज्य थे मुस्लिम राज्य में दिल्ली, मालवा, गुजरात, बहमनी तथा बंगाल था। हिन्दु राज्य में मेवाड़ तथा विजयनगर था ।
⏩ ✪ विजयनगर शासक कृष्ण देवराय बाबर के समकालिन थे बाबर ने इन्हें उस वक्त का सबसे शक्तिशाली शसक बताया है।
Babur notes in hindi
⏩ बाबर की आत्मकथा-
✪ बाबर ने तुर्की भाषा में अपनी आत्मकथा ‘तुजुक-ए-बाबरी’ की रचना की। इसे बाबरनामा या वाकियाते-बाबरी के नाम से भी जाना जाता है।
✪सर्वप्रथम अकबर के समय में इसका फारसी भाषा में अनुवाद पायन्दा खां ने किया ।.
✪इसके तुरन्त बाद 1590 ई० में अब्दुर्रहीम खानेखाना ने इसका फारसी अनुवाद किया।
✪बाबरनामा का फारसी भाषा से अंग्रेजी अनुवाद सर्वप्रथम लीडन, अर्सकिन व एल्किंग ने 1826 ई० में किया।
✪मिजेस बैवरिज ने सर्वप्रथम मूल तूर्कीभाषा से इसका अंग्रेजी में अनुवाद 1905 ई० में किया।
✪ बाबर ने तुर्की भाषा में एक एक काव्य सग्रह ‘दीवान’ का संकलन करवाया। उसने मुबइयान नामक एक पद्यशैली का विकास करवाया।
✪ बाबर ने रिसाल-ए- उसज की रचना की जिसे ‘खत-ए-बाबरी’ भी कहते हैं।
⏩ बाबर(BABAR) के 4 पुत्र थे। जिसमें सबसे बड़ा पुत्र हुमायुं था। बाबर अपने जीवन काल में ही हुमायूं को अपना उत्तराधिकारी बनाया था।
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➡️ भारत में प्रेस एवं शिक्षा का विकास MCQ
➡️ भारत में यूरोपीय कम्पनियों का आगमन MCQ
➡️ इतिहास के पिछले परीक्षाओ में पूछे गए प्रश्न MCQ
➡️ प्रारंभिक विद्रोह ,राष्ट्रवाद का उदय , स्वतंत्रता संघर्ष की शुरुवात , प्रारंभिक चरण ( 1885 – 1918 ) –MCQ
➡️सामाजिक एवं धार्मिक सुधार आंदोलनMCQ
➡️ गवर्नर जनरल और वायसराय–MCQ
➡️ जनजातीय , किसान , मजदूर आन्दोलन–MCQ
➡️ 1857 की क्रांति – MCQ
➡️ भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस–MCQ
➡️सिंधु या हड़प्पा सभ्यता–