चिपको आन्दोलन का इतिहास, कारण, नेता, प्रमुख नारे
चिपको आन्दोलन 20वीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण पर्यावरणीय आंदोलनों में से एक है, जिसने विश्वभर में पर्यावरण संरक्षण और स्थिरता के प्रति जागरूकता बढ़ाई। यह आन्दोलन 1970 के दशक में भारत के उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा) के हिमालयी क्षेत्र में शुरू हुआ और इसका उद्देश्य वनों की अंधाधुंध कटाई को रोकना और स्थानीय समुदायों की आजीविका की रक्षा करना था।
विवरण | जानकारी |
---|---|
आन्दोलन की शुरुआत | 1973 |
स्थान | मंडल गाँव, चमोली जिला, उत्तराखंड |
मुख्य उद्देश्य | वनों की कटाई रोकना और पर्यावरण संरक्षण |
प्रमुख कारण | वनों की अंधाधुंध कटाई, पर्यावरणीय असंतुलन, भूस्खलन, बाढ़ |
प्रमुख नेता | चंडी प्रसाद भट्ट, सुन्दरलाल बहुगुणा, गौरा देवी |
महत्वपूर्ण घटना | 1974, रैणी गाँव, गौरा देवी के नेतृत्व में पेड़ों की रक्षा |
कंपनी का नाम | साइमंड्स कंपनी |
सरकारी आदेश | 1980 में हिमालयी क्षेत्रों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्ष का प्रतिबंध |
पर्यावरणीय प्रभाव | पर्यावरणीय जागरूकता, नीतिगत बदलाव |
सामाजिक प्रभाव | महिलाओं की सशक्तिकरण, स्थानीय समुदायों की सहभागिता |
प्रेरणा का सिद्धांत | गाँधीवादी अहिंसा और सत्याग्रह |
प्रमुख नारा | “क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार” |
राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान | पर्यावरण संरक्षण की दिशा में जागरूकता |
शेखर पाठक की पुस्तक | “हरी भरी उम्मीद” |
पुस्तक में महत्व | पर्यावरण संरक्षण, महिलाओं की भूमिका, सामाजिक-आर्थिक प्रभाव |
चिपको आन्दोलन एक पर्यावरणीय आंदोलन था जो 1970 के दशक में उत्तराखंड, भारत में हुआ। यह आन्दोलन वनों की कटाई को रोकने और पर्यावरण संरक्षण के लिए स्थानीय समुदायों, विशेषकर महिलाओं, के प्रयासों का एक प्रमुख उदाहरण है। यहाँ चिपको आन्दोलन के बारे में विस्तृत जानकारी दी गई है:
पृष्ठभूमि
चिपको आन्दोलन का आरम्भ 1973 में उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा) के चमोली जिले के मंडल गाँव से हुआ। इस आंदोलन का मुख्य उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना था।
प्रमुख कारण
- वनों की कटाई: उत्तराखंड के वनों की अंधाधुंध कटाई, विशेषकर ठेकेदारों द्वारा वनों के व्यावसायिक उपयोग के लिए, स्थानीय समुदायों के लिए जल, ईंधन और चारे की कमी का कारण बन रही थी।
- पर्यावरणीय असंतुलन: वनों की कटाई से पर्यावरणीय असंतुलन बढ़ रहा था, जिससे भूस्खलन और बाढ़ की घटनाएं बढ़ रही थीं।
- आर्थिक हानि: स्थानीय लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा था, क्योंकि वनों पर उनकी निर्भरता थी।
प्रारंभिक आन्दोलन

चिपको आन्दोलन की शुरुआत 1973 में चमोली जिले के मंडल गाँव में हुई थी। यह आन्दोलन तब शुरू हुआ जब सरकारी ठेकेदारों ने जंगलों की कटाई के लिए पेड़ों को चिन्हित किया। ग्रामीण महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उनके कटाव को रोकने का प्रयास किया।
आन्दोलन के प्रमुख नेता

- चंडी प्रसाद भट्ट: चिपको आन्दोलन के प्रारंभिक नेताओं में से एक, जिन्होंने स्थानीय लोगों को संगठित किया और आन्दोलन का नेतृत्व किया।
- सुन्दरलाल बहुगुणा: पर्यावरणविद् और चिपको आन्दोलन के प्रमुख चेहरा, जिन्होंने “पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था” के संबंध को उजागर किया और व्यापक जन जागरूकता पैदा की।
- गौरा देवी: रैणी गाँव की महिला, जिन्होंने 1974 में प्रमुख आंदोलन का नेतृत्व किया और महिलाओं को संगठित किया।
सुन्दरलाल बहुगुणा का योगदान

- पर्यावरणीय जागरूकता: सुन्दरलाल बहुगुणा ने चिपको आन्दोलन को एक व्यापक पर्यावरणीय दृष्टिकोण दिया। उन्होंने “पर्यावरण और विकास” के बीच संतुलन की आवश्यकता पर जोर दिया और इस विचारधारा को जन-जन तक पहुँचाया।
- वृक्षों की रक्षा का संदेश: उन्होंने “पारिस्थितिकी का सिद्धांत” (Ecology is Permanent Economy) का प्रचार किया और वृक्षों की महत्ता को समझाया। उनका संदेश था कि पेड़ न केवल पर्यावरणीय दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि वे स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी आवश्यक हैं।
- राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच: बहुगुणा ने चिपको आन्दोलन को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय मंच पर प्रस्तुत किया। उनके प्रयासों से आन्दोलन को वैश्विक पहचान मिली और पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में प्रेरणा का स्रोत बना।
- लंबी पदयात्राएं: उन्होंने हिमालयी क्षेत्र में लंबी पदयात्राएं कीं, जिसके माध्यम से उन्होंने ग्रामीणों को जागरूक किया और सरकार का ध्यान आकर्षित किया।
चंडी प्रसाद भट्ट का योगदान
- संगठन और नेतृत्व: चंडी प्रसाद भट्ट ने स्थानीय ग्रामीणों को संगठित किया और आन्दोलन का नेतृत्व किया। उन्होंने ग्रामीणों को पर्यावरणीय मुद्दों के प्रति जागरूक किया और उन्हें वनों की रक्षा के लिए प्रेरित किया।
- दशोली ग्राम स्वराज्य संघ (DGSS): भट्ट ने 1964 में दशोली ग्राम स्वराज्य संघ की स्थापना की, जो स्थानीय संसाधनों के संरक्षण और विकास के लिए काम करता था। यह संस्था चिपको आन्दोलन का मुख्य संगठन बन गई।
- सामाजिक और आर्थिक विकास: उन्होंने स्थानीय समुदायों के आर्थिक विकास के लिए वैकल्पिक रोजगार के साधनों को बढ़ावा दिया, जैसे हस्तशिल्प और कुटीर उद्योग। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि ग्रामीण अपनी आजीविका के लिए वनों पर अत्यधिक निर्भर न रहें।
- शांति और अहिंसा: चंडी प्रसाद भट्ट ने आन्दोलन को अहिंसक बनाए रखा और गाँधीवादी सिद्धांतों पर आधारित किया। उन्होंने सत्याग्रह और शांतिपूर्ण विरोध के माध्यम से आन्दोलन को सफल बनाया।
गौरा देवी का योगदान
- महिलाओं की सहभागिता: गौरा देवी ने महिलाओं को संगठित किया और आन्दोलन में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका को स्थापित किया। उन्होंने रैणी गाँव में ठेकेदारों के खिलाफ महिलाओं को संगठित कर पेड़ों की रक्षा की।
- रैणी गाँव की घटना: 1974 में गौरा देवी ने रैणी गाँव में ठेकेदारों को वनों की कटाई से रोकने के लिए महिलाओं के समूह का नेतृत्व किया। यह घटना चिपको आन्दोलन की सबसे प्रमुख और प्रभावशाली घटनाओं में से एक थी।
- स्थानीय नेतृत्व: गौरा देवी ने स्थानीय स्तर पर नेतृत्व प्रदान किया और ग्रामीण महिलाओं को संगठित कर उन्हें वनों की रक्षा के लिए प्रेरित किया। उनके नेतृत्व ने यह दिखाया कि महिलाएँ भी पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं।
- साहस और दृढ़ता: गौरा देवी का साहस और दृढ़ता आन्दोलन के लिए प्रेरणादायक था। उन्होंने अपने समुदाय की रक्षा के लिए खुद को जोखिम में डालते हुए ठेकेदारों का सामना किया।
प्रमुख घटनाएँ
- 1973, मंडल गाँव: महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उनकी कटाई रोकी।
- 1974, रैणी गाँव: गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने ठेकेदारों को जंगल से बाहर निकाल दिया और पेड़ों की कटाई को रोका। यह घटना चिपको आन्दोलन की सबसे प्रमुख घटना बन गई।
- 1975, ग्रीन बेल्ट आन्दोलन: चंडी प्रसाद भट्ट और अन्य कार्यकर्ताओं ने एक ग्रीन बेल्ट बनाने के लिए आन्दोलन किया, जिसमें स्कूलों और कॉलेजों के छात्रों ने हिस्सा लिया।
आन्दोलन के परिणाम
- वन संरक्षण: चिपको आन्दोलन के चलते उत्तर प्रदेश सरकार ने 1980 में एक आदेश जारी कर हिमालयी क्षेत्रों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए प्रतिबंध लगा दिया।
- राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पहचान: चिपको आन्दोलन ने राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पर्यावरण संरक्षण की दिशा में जागरूकता बढ़ाई। इसे दुनिया भर में एक प्रेरणादायक आंदोलन के रूप में देखा गया।
- महिलाओं की भूमिका: इस आन्दोलन ने महिलाओं की भूमिका को उजागर किया और उन्हें पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक और सशक्त बनाया।
- नीतिगत बदलाव: भारत सरकार ने 1980 में वन संरक्षण अधिनियम (Forest Conservation Act) पारित किया, जिसने वन संसाधनों के उपयोग को नियंत्रित किया और पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने के लिए कठोर नियम बनाए।
चिपको आन्दोलन (CHIPKO MOVEMENT) की प्रमुख विशेषताएँ
- गाँधीवादी तरीके: यह आन्दोलन अहिंसक और गाँधीवादी सिद्धांतों पर आधारित था। इसमें सत्याग्रह और अहिंसा का प्रमुख रूप से प्रयोग किया गया।
- स्थानीय सहभागिता: ग्रामीण समुदायों, विशेषकर महिलाओं, की सक्रिय सहभागिता ने इसे एक सफल जन आन्दोलन बनाया।
- पर्यावरणीय शिक्षा: इस आन्दोलन ने पर्यावरणीय शिक्षा और जागरूकता में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जिससे भविष्य के पर्यावरणीय आंदोलनों को प्रेरणा मिली।
चिपको आन्दोलन (CHIPKO MOVEMENT) के प्रमुख नारे
- “क्या हैं जंगल के उपकार, मिट्टी, पानी और बयार”
- “धरती की बढे़ शान, बंद करो वृक्षों का कटान”
निष्कर्ष
चिपको आन्दोलन ने पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता और नीतिगत बदलाव लाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। यह आन्दोलन आज भी पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में एक प्रेरणास्रोत बना हुआ है और यह दिखाता है कि स्थानीय समुदायों की सहभागिता और अहिंसक आन्दोलन कितने प्रभावी हो सकते हैं।
“हरी भरी उम्मीद” से चिपको आन्दोलन (CHIPKO MOVEMENT) की जानकारी

आन्दोलन की उत्पत्ति और पृष्ठभूमि
शेखर पाठक की पुस्तक “हरी भरी उम्मीद” में चिपको आन्दोलन के आरंभिक दिनों और पृष्ठभूमि पर विस्तार से चर्चा की गई है। यह पुस्तक बताती है कि चिपको आन्दोलन का मूल कारण वनों की अंधाधुंध कटाई और इसके परिणामस्वरूप स्थानीय समुदायों की आजीविका पर पड़ने वाला नकारात्मक प्रभाव था। पुस्तक में इस बात पर जोर दिया गया है कि कैसे ग्रामीण क्षेत्रों में वनों का संरक्षण आवश्यक है, क्योंकि ये क्षेत्र लोगों के लिए जल, ईंधन, चारा और अन्य आवश्यक वस्तुएं प्रदान करते हैं।
आन्दोलन की प्रमुख घटनाएँ
मांडल और रैणी गाँव की घटनाएँ:
- 1973, मांडल गाँव: इस घटना को पुस्तक में विस्तृत रूप से वर्णित किया गया है। यह बताया गया है कि कैसे स्थानीय महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर ठेकेदारों को वनों की कटाई से रोका।
- 1974, रैणी गाँव: गौरा देवी के नेतृत्व में हुए आन्दोलन की घटना को भी पुस्तक में प्रमुखता से वर्णित किया गया है। यह घटना चिपको आन्दोलन की सबसे महत्वपूर्ण घटनाओं में से एक मानी जाती है, जहाँ महिलाओं ने एकजुट होकर पेड़ों की रक्षा की।
आन्दोलन के प्रभाव
वन संरक्षण के लिए सरकारी कदम: पुस्तक में उल्लेख किया गया है कि चिपको आन्दोलन के परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश सरकार ने 1980 में हिमालयी क्षेत्रों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों का प्रतिबंध लगा दिया। इस नीतिगत बदलाव ने वनों के संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
महिलाओं की भूमिका: शेखर पाठक ने पुस्तक में इस बात पर विशेष जोर दिया है कि चिपको आन्दोलन में महिलाओं की भूमिका कितनी महत्वपूर्ण थी। महिलाओं ने सक्रियता से भाग लेकर न केवल वनों की रक्षा की, बल्कि समाज में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका को भी स्थापित किया।
पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव
स्थानीय और वैश्विक स्तर पर जागरूकता: पुस्तक में यह भी बताया गया है कि चिपको आन्दोलन ने न केवल भारत में, बल्कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाई। यह आन्दोलन पर्यावरणीय आंदोलनों के लिए एक प्रेरणा स्रोत बना और इसे एक आदर्श उदाहरण के रूप में देखा गया।
आर्थिक और सामाजिक परिवर्तन: पुस्तक में चिपको आन्दोलन के सामाजिक और आर्थिक प्रभावों पर भी चर्चा की गई है। यह बताया गया है कि कैसे इस आन्दोलन ने स्थानीय समुदायों को अपने अधिकारों और संसाधनों की रक्षा के लिए संगठित और सशक्त किया।
चिपको आन्दोलन (CHIPKO MOVEMENT) की प्रमुख बातें (पुस्तक से उद्धरण)
- “चिपको आन्दोलन का मूल मंत्र था ‘पेड़ों से चिपको’।”
- “महिलाओं ने अपनी जमीन और जंगल को बचाने के लिए जो साहस दिखाया, वह वास्तव में प्रेरणादायक था।”
- “यह आन्दोलन गाँधीवादी अहिंसा पर आधारित था, जहाँ लोगों ने शांतिपूर्ण तरीके से अपने अधिकारों के लिए संघर्ष किया।”
निष्कर्ष
डॉ. शेखर पाठक की “हरी भरी उम्मीद” में चिपको आन्दोलन को एक व्यापक दृष्टिकोण से देखा गया है। इस पुस्तक में आन्दोलन के विभिन्न पहलुओं, इसकी सफलता और इसके दीर्घकालिक प्रभावों पर गहन विचार किया गया है। यह आन्दोलन न केवल पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाने में सफल रहा, बल्कि सामाजिक न्याय और महिलाओं की सशक्तिकरण में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया।
साइमंड्स कंपनी
चिपको आन्दोलन के दौरान जिस कंपनी ने पेड़ों की कटाई का ठेका लिया था, वह साइमंड्स कंपनी थी। यह कंपनी वाणिज्यिक उद्देश्यों के लिए वनों की कटाई करने आई थी, और इसे स्थानीय लोगों के विरोध का सामना करना पड़ा। साइमंड्स कंपनी का उद्देश्य इन पेड़ों को काटकर उनसे व्यावसायिक लाभ प्राप्त करना था, जिससे स्थानीय ग्रामीणों की आजीविका और पर्यावरण पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता।
साइमंड्स कंपनी के द्वारा वनों की कटाई के विरोध में चिपको आन्दोलन की शुरुआत हुई, जहाँ स्थानीय महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उनकी रक्षा की और वनों की कटाई को रोका। इस आन्दोलन ने वनों के संरक्षण और पर्यावरणीय जागरूकता में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
चिपको आन्दोलन (CHIPKO MOVEMENT) से संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न और उत्तर
प्रश्न 1: चिपको आन्दोलन का आरंभ कब और कहाँ हुआ था?
उत्तर: चिपको आन्दोलन का आरंभ 1973 में उत्तराखंड (तब उत्तर प्रदेश का हिस्सा) के चमोली जिले के मंडल गाँव से हुआ था।
प्रश्न 2: चिपको आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य क्या था?
उत्तर: चिपको आन्दोलन का मुख्य उद्देश्य वनों की कटाई को रोकना और पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता फैलाना था।
प्रश्न 3: चिपको आन्दोलन के प्रमुख कारण क्या थे?
उत्तर: प्रमुख कारणों में वनों की अंधाधुंध कटाई, पर्यावरणीय असंतुलन, भूस्खलन और बाढ़ की बढ़ती घटनाएँ, और स्थानीय लोगों की आजीविका पर प्रतिकूल प्रभाव शामिल थे।
प्रश्न 4: चिपको आन्दोलन के प्रमुख नेताओं में से कौन-कौन थे?
उत्तर: चिपको आन्दोलन के प्रमुख नेताओं में चंडी प्रसाद भट्ट, सुन्दरलाल बहुगुणा और गौरा देवी शामिल थे।
प्रश्न 5: चिपको आन्दोलन की सबसे प्रमुख घटना कौन सी थी और कब हुई?
उत्तर: सबसे प्रमुख घटना 1974 में रैणी गाँव में हुई थी, जब गौरा देवी के नेतृत्व में महिलाओं ने ठेकेदारों को जंगल से बाहर निकाल दिया और पेड़ों की कटाई को रोका।
प्रश्न 6: चिपको आन्दोलन के दौरान पेड़ों की कटाई का ठेका किस कंपनी ने लिया था?
उत्तर: पेड़ों की कटाई का ठेका साइमंड्स कंपनी ने लिया था।
प्रश्न 7: चिपको आन्दोलन के परिणामस्वरूप कौन सा सरकारी आदेश जारी हुआ?
उत्तर: चिपको आन्दोलन के परिणामस्वरूप उत्तर प्रदेश सरकार ने 1980 में हिमालयी क्षेत्रों में वृक्षों की कटाई पर 15 वर्षों के लिए प्रतिबंध लगा दिया।
प्रश्न 8: चिपको आन्दोलन का पर्यावरणीय और सामाजिक प्रभाव क्या था?
उत्तर: इस आन्दोलन ने पर्यावरणीय जागरूकता बढ़ाई, महिलाओं की सशक्तिकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, और वन संरक्षण के लिए नीतिगत बदलाव लाने में मदद की।
प्रश्न 9: चिपको आन्दोलन की प्रेरणा किस सिद्धांत पर आधारित थी?
उत्तर: चिपको आन्दोलन का प्रेरणा स्रोत गाँधीवादी अहिंसा का सिद्धांत था, जिसमें सत्याग्रह और अहिंसा का प्रमुख रूप ttसे प्रयोग किया गया।
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