सिलक्यारा सुरंग हादसे में बौखनाग देवता की नाराजगी: कारण और प्रभाव
सिलक्यारा सुरंग हादसे में बौखनाग देवता की नाराजगी
सिलक्यारा सुरंग हादसे में बौखनाग देवता का सम्बन्ध और इतिहास
बौख नाग देवता और सिलक्यारा सुरंग हादसे का संबंध स्थानीय आस्था और परंपराओं से जुड़ा हुआ है। स्थानीय लोगों का मानना है कि बौख नाग देवता, जो कि एक स्थानीय पर्वतीय देवता हैं, उनके प्रकोप के कारण ही सुरंग हादसा हुआ था। यह हादसा दीपावली के दिन हुआ था, और इसके बाद बचाव कार्य में भी देवता की कृपा महत्वपूर्ण मानी गई।
सिलक्यारा सुरंग हादसे में बौखनाग देवता की नाराजगी
बौख नाग देवता का इतिहास
बौख नाग देवता उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले में पूजे जाते हैं। उनका मंदिर उत्तरकाशी के जंगलों में स्थित है और यहाँ हर साल भक्तों का तांता लगा रहता है। मान्यता है कि यह देवता अपनी शक्तियों से लोगों की मनोकामनाएँ पूरी करते हैं, विशेषकर संतान प्राप्ति के लिए नवविवाहित जोड़े यहाँ दर्शन करने आते हैं। हर साल एक मेले का आयोजन भी किया जाता है जहाँ भक्तगण अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं
सुरंग हादसे से बौख नाग देवता की नाराजगी
सुरंग हादसे के समय स्थानीय लोगों ने बताया कि बौख नाग देवता का एक छोटा मंदिर सुरंग के ऊपर के जंगल में था, जिसे सुरंग निर्माण के दौरान बिना उचित विधियों के तोड़ दिया गया था। इस कारण स्थानीय लोग और देवता नाराज हो गए थे। माना जा रहा है कि देवता को शांत करने के लिए कंपनी ने वादा किया था कि वे नया मंदिर बनाएंगे, लेकिन यह वादा पूरा नहीं किया गया, जिससे देवता का प्रकोप सुरंग हादसे के रूप में प्रकट हुआ
सिलक्यारा सुरंग हादसे में बौखनाग देवता की नाराजगी
सुरंग हादसे में देवता की भूमिका
सुरंग हादसे के बाद, जब 41 मजदूर सुरंग में फंस गए थे, तो बचाव कार्य में लगे लोगों ने बौख नाग देवता की कृपा के लिए विशेष पूजा-अर्चना की। एक अस्थायी मंदिर बनाया गया और बचाव कर्मियों ने देवता की प्रतिदिन पूजा की। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भी देवता की कृपा का उल्लेख किया और बताया कि उनके आशीर्वाद और वैज्ञानिक प्रयासों के संगम से ही बचाव कार्य सफल हुआ
इन तथ्यों से स्पष्ट होता है कि बौख नाग देवता का उत्तराखंड के स्थानीय समाज में गहरा महत्व है और उनके आशीर्वाद को हर कठिनाई का समाधान माना जाता है।